Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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३३४
३७०
अरसं च अण्णवेलाकदं । अरहंत अरहंतसिद्ध अरहंता असरीरा अरुहा सिद्धाइरिया अर्थेष्वेकं पूर्वश्रुत अर्हच्चरणसपर्या अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय अवरा पजाय ठिदी अवर्णस्य सहस्रार्ध असत्यचातुर्यबलेन असत्यसामर्थ्यवशादरातीन् असिआउसा असुहादो विणिवित्ती अस्मिंस्तु निश्चलध्यान अस्यां निरन्तराभ्यासात् अस्याः शतद्वयं ध्यानी अह उवइट्ठो संतो अह ण लहइ तो भिक्खं अहिंसालक्षणो धर्मः अंगुलअसंखभागं आउद्दरासिवारं आकंपिय अणुमाणिय आकाशस्फटिकमणि आक्रुष्टोऽहं हतो नैव आज्ञापायविपाक आदा खु मज्झ गाणे आदिमं चाहतो नाम्नो आदिसंहननोपेतः आद्यन्तरहितं द्रव्यं आद्यास्तु षड्जघन्याः
-कत्तिगेयाणुप्पेक्खा
[शिवार्य, भगवती आ० २१६] [बृहद्र्व्य संग्रहटीका ४९]
३७० [बृहद्र्व्य संग्रहटीका ४९] | [बृहद्रव्यसंग्रहटीकायामुद्धतेयं गाथा ४९] [कुन्दकुन्द, मोक्षप्रा० १०४, द्वादश अ० १२] रविचन्द्र, आराधनासार
३९१ [समन्तभद्र, रत्नकरण्डक०. ४-३०]
३२४ [ बृहद्र्व्य संग्रहटीका ४९]
३७०,३७२ [नेमिचन्द्र, गोम्मटसार' जी० ५७२ ]
१५३ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-५३ ] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २६-१८]
३६२ [ शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २६-२०] [बृहद्र्व्य संग्रहटीका ४९] [नेमिचन्द्र, द्रव्यसंग्रह ४५] [ शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४२-२८]
३८३ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-५६ ] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-४९]
३७२
૨૮૮ [? वसुनन्दि, श्रावकाचार ३०७]
२८७
३६५ वसुनन्दि, यत्याचार [ =मूलाचार, प० ४६ ] १०६ [ नेमिचन्द्र, गोम्मटसार जी० कां० २०३] [शिवार्य ] भगवत्याराधना [५६२]
३४२ रविचन्द्र, आराधनासार [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव १९-१६]
२९३ [उमाखाति, त० सू० ९-३६]
२७५ [ कुन्दकुन्द, नियमसार १०.]
३७३ [शुभचन्द्र ] ज्ञानार्णव [४२-५]
३७९
३०३
२८९
। समन्तभद्र, रत्नकरण्डक १४७*४,५-२६*१] [चारित्रसार पृ. २०] रविचन्द्र, आराधनासार [ नेमिचन्द्र, गोम्मटसार जीव० १८३] [उमाखाति; तत्त्वार्थसू० ७-३१] [समन्तभन्द्र, रत्नकरण्डक. १-२२]
आयेष्वार्तध्यानं आधारे थूलाओ आनयनप्रेष्यप्रयोगः आपगासागरस्नानमुच्चयः आभुक्तेर्वरपात्रस्य आयंबिलणिब्वियडी आरामं तस्य पश्यति
३९१ ६१-२ २७.
२३.
२६३
२७७
[वसुनन्दि, श्रावकाचार २९२] श्रुति [ ? बृहदारण्यक ४-३-१४]
१६६
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