Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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घाए धाइ असंखेजा चतुराहार विवर्जनमुपवासः चतुर्वर्णमयं मन्त्रं
चतुर्विधमार्तध्यानं
चत्तारि बारसमुवसम चत्तारि मंगलं
चरया य परिव्वाजा
चर्मनखरोमसिद्धेः
चंडोमाणी पदो
चित्तरागो भवेयस्य
चिदानन्दमयं शुद्धं
चोहसमल परि
छडमदसम दुवाल से हि छद्दव्वावद्वाणं सरिसं छम्मासा उगसेसे
छट्टिमास पुढवी
जघन्या अन्तरात्मानो जणणी जगणु वि कंतु जत्य ण झाणं ज्ञेयं
जत्थे मरद जीवो
जदं चरे जदं चिट्ठे
जदि अद्धव कोइ
जदि एवं ण चएजो
जस्स ण दु आउसरिसाणि
जह उक्कट्ठे तह जहणेण दोतिणि जहिं [ जत्थ] विसोत्तिय जं उप्पजइ दव्वं
जं किं पि पडिदभिक्खं यिदम्बई मिन्यु जड़ जा दग्वे होइ मई जिणवयणचम्म
जीव पएसके के कम्मपएसा जीवित मरणाशंसा
जीविदरे कम्मचये पुण्णं
जूवं मज्जं मंसं वेसा
जे यिदंसणअहिमुहा जेत्ती विखेत्तमित्तं
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- कत्तिगेयाणुप्पेक्खा -
[ रत्नकरण्ड श्रावकाचार १०९]
[ शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-५१] चारप्रसारे [पृ. ७
[ गोम्मटसार ०६ ६१९]
[ दशभक्ति, ईर्यापथशुद्धि पृ. १६७
दशभक्त्यादिसंग्रह, व. सं. २४६२ ]
[ त्रिलोकसार ५४७ ]
[ शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४०- १६]
[ वसुनन्दिधावकाचार २३१]
[ केर, मूलाचार ५-१५१]
[ गोम्मटसार जी० कां० ५८० ] वसुनन्दि, श्रावकाचार ५३० ] संग्रह १-१९३]
योगीन्द्रदेव [ परमात्मप्रकाश १-८४ ] [ आराधनासार ७८ ]
[ गोम्मटसार जी० कां० १९२] [मूलाचार १०-१२२ दशवेकालिक ४-८ ]
[ वसुनन्दि, श्रावकाचार ३०६]
[ वसुनन्दि, श्रावकाचार ३०९ ]
[ वसुनन्दि, श्रावकाचार ५२९]
[ वसुनन्दि, श्रावकाचार २९० ]
[ भगवत्याराधना २२८ ]
[ भावसंग्रह ५७८ ]
[ वसुनन्दि, श्रावकाचार ३०८ ]
परमात्मप्रकाश [ १ - ११३]
[ वसुनन्दि, श्रावकाचार २७५ ]
[ भावसंग्रह ३२५]
[ तत्त्वार्थसूत्र ७ ३७]
[ गोम्मटसार जी० कां० ६४२]
[ वसुनन्दि, श्रावकाचार ५९]
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[ परमात्मप्रकाश १८६ ]
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[ नेमिचन्द्र ] आगमे [गोम्मटसार जी० ५७२०२] १४९, १५३
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