Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 578
________________ -टीकोक्तपद्यादिसूची[गोम्मटसार जी. का. १३८] २६५ २३४ वसुनन्दि[श्रावकाचार २०५] २३६ २६३ [ वसुनन्दि, श्रावकाचार २२८] २६३ योगेन्द्रदेव [ परमात्मप्रकाश १९.] ३११ [ वसुनन्दि, श्रावकाचार ३००] २८५ गोम्मटसार [ १२४] [गोम्मटसार जी. कां. ६०१,वसुनन्दिश्रावकाचार १८] १३९ [मूलाचार ९-३६] [परमात्मप्रकाश १८७] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २५-३५] ३६० ३११ २६३ २२० [ वसुनन्दि, श्रावकाचार २२९] २६३ ३८८ २४९ पंच वि इंदियपाणा पंचसु थावरवियले पंचुंबरसहिदाई पात्रापात्रे समायाते पादोदयं पवित्तं पावें णारउ तिरिउ पुट्ठो वापुट्ठो वा पुढविदगागणिमारुद पुढवीजलं च छाया पुढवीय समारंभ पुणेण होइ विहवो पुण्यानुष्ठानजातैरभिलषति पुत्रदारादिभिर्दोषे पुद्गलपरिवर्तार्थ परतो पुप्फंजलिं खिवित्ता पुव्वमुहो होदि जिणो पुव्वुत्तरदक्षिणपच्छिमासु पुव्वुत्तविहाणेणं पृथग्भावमतिक्रम्य प्रहासे मन्योपपदे प्रापद्देवं तव नुतिपदैः प्राप्त्यप्राप्योर्मनोज्ञ प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्य प्रोद्यत्संपूर्णचन्द्राभं बत्तीस किर कवला बन्धवधच्छेदाति बहुबहुविधक्षिप्रानिःसृत बहुमज्झदेसभागम्हि बह्वारम्भपरिग्रहेषु बादरबादरबादर बायरसुहुमा तेसिं बालय णिसुणसु वयणं बाह्यप्रन्थविहीना बाह्येषु दशसु वस्तुषु बीमो भागो गेहे बे सत्त दसय चोद्दस बोधेन दुर्लभत्वं ब्रवीति मध्यमं क्रौञ्चो ब्रह्मचारी गृहस्थश्च २७७ ३७८ १९८ ३२४ ३६१ वसुनन्दि [श्रावकाचार २१४] [? वसुनन्दि, श्रावकाचार २८८] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४०-३०] [ अष्टाध्यायी १, ४,१०६] [एकीभावस्तोत्र १२] आर्षे [जिनसेन, महापुराण २१-३६] [तत्त्वार्थसूत्र ९-२०] [ज्ञानार्णव ३८-६७] भगवती आराधना [२११] [तत्त्वार्थसूत्र ७-२५] [तत्त्वार्थसूत्र १-१६] त्रैलोक्यसार [३] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २६-२९] [गोम्मटसार जी. का. ६०२] गोम्मटसार जी. का. १७६] ३७४ २३९ ९२ २८३ २८३ [रत्नकरण्डश्रावकाचार १४५] [भावसंग्रह ५७९] [ मूलाचार १२-७८, जंबूदीवपुण्णत्ती ११-३५३] २८० २०४ १२३ उपासकाध्ययने [ आदिपुराण ३९-१५२; सागरधभृितटीकायामुद्धृतोऽयं श्लोकः ७-२०] २८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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