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१. अनित्यानुप्रेक्षा
लच्छी-संसत्तमणो जो अप्पाणं धरेदि कट्ठेण । सोराइ दाइयाणं कजं साहेदि' मूढप्पा ॥ १६ ॥
[ छाया-लक्ष्मीसंसकमनाः यः आत्मानं धरति कष्टेन । स राजदायादीनां कार्य साधयति मूढात्मा ॥ ] यः पुमान् लक्ष्मीसंसकमना लक्ष्म्यां संसकम् आसक्तं मनश्चित्तं यस्य स तथोक्तः, आत्मानं स्वप्राणिनं कष्टेन बहिर्गमनजलयान कृषिकरणसंग्राम प्रवेशनादिदुःखेन धरति बिभर्ति, स मूढात्मा अज्ञानी जीवः साधयति निष्पादयति । किम् । कार्य कर्तव्यम् । केषाम् । राजदायादीनां राज्ञां भूपतीनां गोत्रिणां च ॥ १६ ॥
जो वडारदि' लच्छि बहु-विह-बुद्धीहिँ णेय तिप्पेदि' । समारंभं कुवदि रति-दिणं तं पि चिंतेई ॥ १७ ॥
णय भुंजदि वेलाए चिंतावत्थो ण सुवदि रयणीए ।
सो दासत्तं कुव्वदि विमोहिदो लच्छि-तरुणीएँ ॥ १८ ॥
[ छाया-य: वर्धापयति लक्ष्मी बहुविधबुद्धिभिः नैव तृप्यति । सर्वारम्भं कुरुते रात्रिदिनं तमपि चिन्तयति ॥ न च भुङ्क्ते वेलायां चिन्तावस्थः न खपिति रजन्याम् । स दासत्वं कुरुते विमोहितः लक्ष्मीतरुण्याः ॥ ] यः पुमान् वर्धापयति वृद्धिं नयति । काम् । लक्ष्मी धनधान्यसंपदाम् । काभिः । बहुविधबुद्धिभिः अनेक प्रकारमतिभिः, नैव तृप्यति लक्ष्म्या तृप्तिं संतोषं न याति सर्वारम्भं असिम षिकृषिवाणिज्यादिसमस्तव्यापारं कुरुते करोति रात्रिदिन अहोरात्रं, तमपि सर्वारम्भं चिन्तयति स्मरयति च पुनः, चिन्तावस्थः चिन्तातुरः सन् वेलायां भोजनकाले न भुङ्क्ते न
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अर्थ - जो मनुष्य लक्ष्मीमें आसक्त होकर कष्टसे अपना जीवन बिताता है, वह मूढ़, राजा और अपने कुटुम्बियोंका काम साधता है ॥ भावार्थ- मनुष्य धन कमानेके लिये बड़े बड़े कष्ट उठाता है । परदेश गमन करता है, समुद्र-यात्रा करता है, कड़कड़ाती हुई धूपमें खेतमें काम करता है, लड़ाईमें लड़ने जाता है । इतने कष्टोंसे धन कमाकर भी जो अपने लिये उसे नहीं खर्चता, केवल जोड़ जोड़कर रखता है, वह मूर्ख, राजा और कुटुम्बियोंका काम बनाता है; क्योंकि मरनेके बाद उसके जोड़े हुए धनको या तो कुटुम्बी बाँट लेते हैं या लावारिस होनेपर राजा ले लेता है ॥ १६ ॥ अर्थ- जो पुरुष अनेक प्रकारकी चतुराईसे अपनी लक्ष्मीको बढ़ाता है, उससे तृप्त नहीं होता, असि, मषि, कृषि, वाणिज्य आदि सत्र आरम्भोंको करता है, रात-दिन उसीकी चिन्ता करता है, न समयपर भोजन करता है और न चिन्ताके कारणसे सोता है, वह मनुष्य लक्ष्मीरूपी तरुणीपर मोहित होकर उसकी दासता करता है ॥ भावार्थ - जिस मनुष्यको कोई तरुण स्त्री मोह लेती है, वह मनुष्य उसके इशारेपर नाचने लगता है । उसके लिये वह सब कुछ करनेको तैयार रहता है । रात-दिन उसे उसीका ध्यान रहता है, खाते, पीते, उठते बैठते, सोते, जागते उसे उसीकी चिन्ता सताती रहती है, वह उसका खरीदा हुआ दास बन जाता है। इसी प्रकार जो मनुष्य लक्ष्मीके संचयमें ही दिन-रात लगा रहता है, उसके लिये अच्छे-बुरे सभी काम करता है, उसकी चिन्ताके कारण न खाता है और न सोता है, वह लक्ष्मीका दास है । उसके भाग्यमें लक्ष्मीकी दासता ही करना लिखा है,
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१ ल साहेहि । २ ल ग वडारय, म स वारइ । ३ व तप्पेदि, म तेप्पेदि । ४ ल ग म चितवदि, स चतवदि । ५ ब बेलाइ चिंता गच्छेण । ६ ब सुयदि, ल म ग सुअदि । ७ ब तरुणी । ८ कुछ प्रतियों में यहाँ युग्मम् या युगलम् शब्द मिलता है।
कार्त्तिके० २
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