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१०. लोकानुप्रेक्षा
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न्यायुः ४९ । चतुरक्षे षण्मासाः, दंशमशकमक्षिकाभ्रमरादीनां चतुरिन्द्रियजीवानामुत्कृष्टं षण्मासायुः ६ । पञ्चाक्षे त्रीणि पल्यानि, उत्तमभोगभूमिजानां मनुष्यतिरश्चामुत्कृष्टेन त्रीणि पत्यान्यायुः ३ । इत्युत्कृष्टमायुर्गतम् ॥ १६३ ॥ अथ सर्वेषां तिर्यग्मनुष्याणां जघन्यायुर्देवनारकाणां च जघन्योत्कृष्ट मायुर्गाथाद्वयेनाह
सव्व-जहणणं आऊं लद्धि- अपुण्णाणं सव्त्र-जीवाणं । मझिम-हीण - महुतं जत्ति - जुदाण णिक्किट्ठे ॥ १६४॥
[ छाया - सर्वजघन्यम् आयुः लब्ध्यपूर्णानां सर्वजीवानाम् । मध्यमहीन मुहूर्तं पर्याप्तियुतानां निःकृष्टम् ॥ ] लब्ध्यपर्याप्तानां सर्वजीवानां लब्ध्यपर्याप्तै केन्द्रियजीवानां लब्ध्यपर्याप्तद्वीन्द्रियप्राणिनां लब्ध्यपर्याप्तत्रीन्द्रियप्राणिनां लब्ध्यपर्याप्तचतुरिन्द्रियप्राणिनां लब्ध्यपर्याप्तपञ्चेन्द्रिय संज्ञिजीवासंज्ञिजीवानां च सर्वजघन्यमायुः क्षुद्रभवग्रहणम् उच्छ्वास स्यैकस्याष्टादशो भागः लक्ष्यः मध्यमान्तर्मुहूर्तमात्रं । तथा वसुनन्दि-यत्याचारे सर्व लब्ध्यपर्याप्तानाम् उच्छ्वासस्य किंचिन्यूनाष्टादश भागः । पजत्तिजुदाणं पर्याप्तियुक्तानां पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतिकायिकै केन्द्रियाणां पर्याप्तानां शंखादिद्वीन्द्रियपर्याप्तानां गोम्यादित्रीन्द्रियपर्याप्तानां भ्रमरादिचतुरिन्द्रियपर्याप्तानां गोगजाश्वहंसादीनां कर्मभूमिजानां कर्मभूमिप्रतिभागजानां पञ्चेन्द्रियतिरश्चां कर्मभूमिजत्रिषष्टिशलाका पुरुषचर मदेहादिवर्जितमनुष्याणां च मध्यमहीन मुहूर्त जिनदृष्ट मध्यमान्तमुहूर्तमात्रं निकृष्टं जघन्यायुः हीनमुहूर्त भिन्नमुहूर्त वा, किंतु पूर्वोक्तान्मुहूर्तात् अयं महान्मुहूर्तः ॥ १६४ ॥
देवा णारयाणं सायर - संखा हवंति तेतीस ।
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च जहणं वासाणं दस सहस्साणि ॥ १६५ ॥
तेइन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु ४९ दिन है । डांस, मच्छर, मक्खी, भौंरा आदि चौइन्द्रिय जीवोंकी उत्कृष्ट आयु छः मास है । उत्कृष्ट भोगभूमिया मनुष्य तिर्यञ्चोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्य है । इस प्रकार उत्कृष्ट आयुका वर्णन समाप्त हुआ || १६३ || अब तिर्यञ्च और मनुष्योंकी जघन्य आयु तथा देव और नारकियोंकी जघन्य और उत्कृष्ट आयु दो गाथाओंसे कहते हैं । अर्थ - लब्ध्यपर्याप्तक सब जीवोंकी जघन्य आयु मध्यम हीनमुहूर्त है और पर्याप्तक सब जीवोंकी जघन्य आयु भी मध्यम हीन मुहूर्त है ॥ भावार्थ - लब्ध्यपर्याप्तक एकेन्द्रिय जीवोंकी, लब्ध्यपर्याप्तक दोइन्द्रिय जीवोंकी, लब्ध्यपर्याप्तक तेइन्द्रिय जीवोंकी, लब्ध्यपर्याप्तक चौइन्द्रिय जीवोंकी और लब्ध्यपर्याप्तक पञ्चेन्द्रिय असंज्ञी तथा संज्ञी जीवोंकी सबसे जघन्य आयु क्षुद्र भव ग्रहण है जो एक श्वासका अट्ठारहवां भाग है । यह मध्यम अन्तर्मुहूर्त मात्र है। जैसा कि वसुनन्दि श्रावकाचार में भी बतलाया है कि सब लब्ध्यपर्याप्तोंकी जघन्य आयु श्वास
अट्ठारह भाग है । तथा पृथिवीकायिक, अष्कायिक, तैजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंकी, शंख आदि दोइन्द्रिय पर्याप्तकोंकी, बिच्छु आदि तेइन्द्रिय पर्याप्तकोंकी, भौंरा आदि चौइन्द्रिय पर्याप्तकोंकी, गाय हाथी घोड़ा हंस आदि कर्मभूमिया पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों की तथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष और चरमशरीरी पुरुषोंके सिवा शेष कर्मभूमिया मनुष्योंकी जघन्य आयु भी मध्यम अन्तर्मुहूर्त मात्र है । किन्तु पूर्व मध्यम अन्तर्मुहूर्तसे यह मध्यम अन्तर्मुहूर्त बड़ा है ॥ १६४ ॥ अर्थ- देवों और नारकियोंकी उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर है । और जघन्य आयु दस हजार वर्ष है | भावार्थ- देवों और नारकियोंकी उत्कृष्ट आयु तेतीस सागर प्रमाण होती है और
५ स देवाणं ।
१ ब आड, म आउं, ग आयु । २ ल म सग यपुण्णाण । ३ मग मुहुतं । ४ निकट्ठे ६ गतेत्तीसा । ७ ब आउ । अंगुल इत्यादि ।
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