Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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॥ कत्तिगेयाणुप्पेक्खा ॥
तिहुवण-तिलयं देवं वंदित्ता तिहुवर्णिद-परिपुजं । वोच्छं अणुपेहाओ भविय-जणाणंद-जणणीओ ॥ १ ॥ अदुवे असरण भणिया संसारामेगमण्णमसुइत्तं । आसव-संवर-णामा णिजर-लोयाणुपेहॉओ ॥ २ ॥ इय जाणिऊण भावह दुल्लह-धम्माणुभावणा णिचं । मण-वयण-काय-सुद्धी एदा दस दो य भणिया हु॥३॥
१. अदुवाणुवेक्खा 'जं किंचि वि उप्पण्णं तस्स विणासो हवेइ णियमेण । परिणाम-सस्वेण वि" ण य किंचि"वि सासयं अत्थि ॥ ४ ॥ जम्मं मरणेण समं संपजइ जोवणं" जरा-सहियं । लच्छी विणास-सहिया इय सवं भंगुरं मुणह ॥ ५ ॥ अथिरं परियण-सयणं पुत्त-कलत्तं सुमित्त-लावणं । . गिह-गोहणाइ सधं णव-घण-विदेण सारिच्छं ॥६॥
१ बमस तिहुआणिद। २ बम वुच्छं। ३ ब अणुवेखामो। म भदुई। ५ वणुवेहालो । ६ ब भावहु । लमसग एदा उद्देसदो भणिया (मस भणियं)। ८ गाथाके भारंभमें व अदुवाणुवेला । ९ बमसग किंपि। १० ग हवह। "ब य। १२ लमसग किंपि। ॥ कमसग सम्वणं ।
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