Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 549
________________ - कत्तिगेयाणुःपेक्खा [गा० ३७१जो कुणदि काउसग्गं बारस-आवत्त-संजदो धीरो। णमण-दुगं पि कुणंतो चदु-प्पणामो पसण्णप्पा ॥ ३७१ ॥ चिंतंतो ससरूवं जिण-बिंवं अहव अक्खरं परमं । झायदि कम्म-विवायं तस्स वयं होदि सामइयं ॥ ३७२ ॥' सत्तैमि-तेरसि-दिवसे अवरण्हे जाइऊण जिण-भवणे । किच्चा किरिया-कम्मं उववासं चउ-विहं गहिय ॥ ३७३ ॥ गिह-वावारं चत्ता रत्तिं गमिऊण धम्म-चिंताए । पचूसे उद्वित्ता किरिया-कम्मं च कादूण ॥ ३७४ ॥ सत्थब्भासेण पुणो दिवसं गमिऊण वंदणं किच्चा। रत्तिं णेर्दूण तहा पचूसे वंदणं किच्चा ॥ ३७५ ॥ पुजण-विहिं च किच्चा पत्तं गहिऊण णवरि" ति-विहं पि । भुंजाविऊण पत्तं भुंजंतो पोसहो होदि ॥ ३७६ ॥ एकं पि णिरारंभ उववासं जो करेदि उवसंतो। बहु-भव-संचिय-कम्मं सो णाणी खवदि लीलाए ॥ ३७७ ॥ उववासं कुवंतो आरंभ" जो करेदि मोहादो। सो णिय-देहं सोसदि ण झाडए कम्म-लेसं पि ॥ ३७८ ॥" सचित्तं पैंत्त-फलं छल्ली मूलं च किसलयं बीयं । जो ण ये भक्खदि णाणी सचित्त-विरदो हवे सो दु ॥ ३७९ ॥ जो ण य भक्खेदि सयं तस्स ण अण्णस्स जुजदे दाउं । भुत्तस्स भोजिदस्स हि णत्थि विसेसो जदो को वि ॥ ३८०॥ जो वजेदि सचित्तं दुजय-जीहा विणिज्जियों तेण । दय-भावो होदि किओ जिण-वयणं पालियं तेण ॥ ३८१ ॥" १ लमसग कुणइ। २ मस उत्त। ३ लमसग करतो। ४ ब सामार (इ?) यं । सत्तम इत्यादि । ५ब सत्तम । ६ स जायऊण । ७ लमसग किरिया कम्मं काऊ (उ?), ब किया किरिया-। [चउविहं], सर्वत्र तु चउन्विहं । ९ वग गहियं । १० व चिंताइ। ११ ब काऊणं । १२ ब णेऊण । १३ ब पूजण । १४ म तहय। १५ग भुज्जाविऊण। १६ ब क्खवदि, ग खविद। १७ ग भारंभो। १८ब झाडइ। १९ ब पोसह । सञ्चित्तं इत्यादि। २० ग सचित्तं पत्ति-। २१ लसग बीजं, म बीर्थ। २२ ब जो य जय । २३ लमसग सचित्तविरओ (उ?) हवे सो वि। २४ लमसग तदो। २५ स .विणिज्जिदा। २६ ब दयमावो वि य अजिउ (?)। २७ ब सचित्तविरदी। जो चउविहं इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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