Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४४०
- कत्तिगेयाणुष्पेक्खा
[गा०४८६केवल-णाण-सहावो सुहुमे जोगम्हि संठिओ काए। जं झायदि स-जोगि-जिणो तं तिदियं सुहुम-किरियं च ॥ ४८६ ॥ जोग-विणासं किच्चा कम्म-चउक्कस्स खवण-करणहूँ। जं झायदि 'अजोगि-जिणो "णिकिरियं तं चउत्थं च ॥ ४८७ ॥" एसो बारस-भेओ उग्ग-तवो जो चरेदि उवजुत्तो। सो खवदि कम्म-पुंजं मुत्ति-सुहं अक्खयं लहदि ॥ ४८८ ॥ जिण-वयण-भावणटुं सामि-कुमारेण परम-सद्धाए । रइया अणुवेहाओ चंचल-मण-रुंभणटुं च ॥ ४८९ ॥ वारस-अणुवेक्खाओ" भणिया हु जिणागमाणुसारेण । जो पढइ सुणइ भावइ सो पावइ सासयं" सोक्खं ॥ ४९० ॥ "तिहुवण-पहाण-सामि कुमार-कालेण तविय-तंव-चरणं । वसुपुज-सुयं मलिं चरम-तियं संथुचे णिचं ॥ ४९१ ॥"
१ ब सुहमे योगम्मि । २ मस तदियं (?)। ३ ग अयोगि, म अजोइ । ४ ब तं निक्तिरिय घउत्थं । ५ब शुक्झाणं ॥ एसो इत्यादि। ६ लमस खविय, ग खविइ। ७ लमसग लहइ। ८ब भावणत्थं । ९ लसगम अणुपेहाउ (ओ?)। १.लग अणुवेखाउ । ११ लमसग उत्तम। १२ बम सुक्खं । १३ लमग तिहुयण। १४ ब सामी। १५ लमसग तवयरणं । १६ ब संथुए। १७ ब स्वामिकुमारानुप्रेक्षा समाप्तः।
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