Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 558
________________ -गा० ४८५] - १२. धम्माणुवेक्खा ४३९ मणहर-विसय-विओगे कह तं पावेमि इदि वियप्पो जो। संतावेण पयट्टो सो चिय अट्ट हवे झाणं ॥ ४७४ ॥ हिंसाणंदेण जुदो असञ्च-वयणेण परिणदो जो हु। तत्थेव अथिर-चित्तो रुदं झाणं हवे तस्स ॥ ४७५ ॥ पर-विसय-हरण-सीलो सगीय-विसए सुरक्खणे दक्खो। तग्गय-चिंताविट्ठोणिरंतरं तं पि रुदं पि ॥ ४७६ ॥ विण्णि वि असुहे झाणे पाव-णिहाणे य दुक्ख-संताणे । तम्हा' दूरे वजह धम्मे पुण' आयरं कुणह ॥ ४७७ ॥ धम्मो वत्थु-सहावो खमादि-भावो ये दस-विहो धम्मो। रयणत्यं च धम्मो जीवाणं रक्खणं धम्मो ॥ ४७८ ॥ धम्मे एयग्ग-मणो जो ण वि वेदेदि पंचहा-विसयं । वेरग्ग-मओ णाणी धम्मज्झाणं हवे तस्स ॥ ४७९ ॥ सुविसुद्ध-राय-दोसो बाहिर-संकप्प-वजिओ धीरो । एयग्ग-मणो संतो जं चिंतइ तं पि सुह-झाणं ॥ ४८० ॥ स-सरूव-समुन्भासो णट्ठ-ममत्तो जिदिदिओ संतो। अप्पाणं चिंतंतो सुह-झाण-रओ हवे साहू ॥ ४८१ ॥ वजिय-सयल-वियप्पो अप्प-सरुवे मणं णिरंधंतो"। जं चिंतदि साणंदं तं धम्मं उत्तमं झाणं ॥ ४८२ ॥१ जत्थ गुणा सुविसुद्धा उवसम-खमणं" च जत्थ कम्माणं । लेसा वि जत्थ सुक्का तं सुकं भण्णदे झाणं ॥ ४८३॥ पडिसमयं सुझंतो अणंत-गुणिदाएं उभय-सुद्धीए । पढमं सुकं झायदि आरूढो उहय-सेढीसु ॥ ४८४ ॥ णीसेस-मोह-विलएँ खीण-कसाए य अंतिमे काले। स-सरूपम्मिणिलीणो सुकं झोएदि एयत्तं ॥ ४८५ ॥ १ लसग वियोगे। २ लमसग दु (?)। ३ लमसग चित्ता। ४ स-तं विरुदं। ५ लमसग णचा। ६ब पुणु। ७मभ। ८म रक्खणे। ९ लमसग जो ण वेदेदि इंदियं विसयं । १० मसग धम्म झा (ज्झा)। ११ ब सज्झाणरओ। १२ लमसग णिरुभित्ता। १३ ब धम्मझाणं ॥ जत्थ इत्यादि। १४ मग खवणं। १५ ब गुणिदाय, सग गुणदाए। १६ लमसग णिस्सेस.. विलये। १७ लगम कसाओ (उ?), स कसाई। १८ स सरूवम्हि । १९ लग शायेहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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