Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 560
________________ गाहाणुकमणिया गाथा गाथाङ्क: गाथा गाथाङ्कः ५२ २९३ २९२ २९१ २९८ २५० १३२ १३१ ३०९ अह णीरोओ देहो अह णीरोओ होदि हु अह धणसहिदो होदि अह लहदि अजवत्तं अहवा देवो होदि हु अहवा बंभसरूवं अह होदि सीलजुत्तो अंगुलअसंखभागो अंतरतच्च जीवो अंतोमुहुत्तमेत्तं लीणं २३४ २९४ १६६ २०५ ४७०. १७५ २३५ आ २४० आउक्खएण मरणं आहारगिद्धिरहिओ आहारसरीरिंदिय १३४ २०९ ha ११६ अइबलिओ वि रउद्दो अइलालिओ वि देहो अग्गी वि य होदि हिम अच्छीहिं पिच्छमाणो अज्जवमिलेच्छखंडे अट्ठ वि गब्भज दुविहा अणउदयादो छण्हं अणवरयं जो संचदि लच्छि अणुद्धरीयं कुंथो अणुपरिमाणं तचं अण्णइरूवं दव्वं अण्णभवे जो सुयणो अण्णं देहं गिण्हदि जणणी अण्णं पि एवमाई अण्णोण्णपवेसेण य अण्णोणं खजंता अथिरं परियणसयणं अदुव असरण भणिया अप्पपसंसणकरणं अप्पसरूवं वत्थु चत्तं अप्पाणं जो जिंदा अप्पा गं पि चवंतं अप्पाणं पिय सरणं अलियवयणं पि सर्च अवसप्पिणीए पढमे अविरयसम्मादिट्ठी असुइमयं दुग्गंधं असुराणं पणवीसं असुरोदीरियदुक्खं असुहं अरउद्दे अह कह वि पमादेण य अह कह वि हवदि देवो अह गब्मे वि य जायदि कार्तिके० ५६ इको जीवो जायदि इक्लो रोई सोई इक्को संचदि पुण्णं इच्छेवमाइदुक्खं इट्ठविओगं दुक्खं इदि एसो जिणधम्मो इय जाणिऊण भावह इय दुलहं मणुयत्तं इय पच्चक्खं पेच्छह इय सध्वदुलहदुलह इय संसार जाणिय इहपरलोयणिरीहो इहपरलोयसुहाणं इंदियजं मदिणाणं ३०० १७२ १९७ ३६५ ४०० २५८ ३५ ४५२ उत्तमगुणगहणरओ उत्तमगुणाण धाम ३१५ २०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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