Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 554
________________ -गा०४३९] - १२. धम्माणुवेक्खालच्छि वंछेइ गरो णेव सुधम्मेसु आयरं कुणइ । बीएण विणा कत्थ वि किं दीसदि सस्स-णिप्पत्ती ॥ ४२८ ॥ जो धम्मत्थो जीवो सो रिउ-वग्गे वि कुणइ खम-भावं । ता पर-दवं वजइ जणणि-समं गणइ परदारं ॥ ४२९ ॥ ता सवत्थ वि कित्ती ता सवत्थ वि हवेई वीसासो। ता सवं पिय भासइ ता सुद्धं माणसं कुणई ॥ ४३०॥ उत्तम-धम्मेण जुदो होदि तिरिक्खो वि उत्तमो देवो । चंडालो वि सुरिंदो उत्तम-धम्मेण संभवदि ॥ ४३१ ॥ अग्गी वि य होदि हिमं होदि भुयंगो वि उत्तमं रयणं । जीवस्स सुधम्मादो देवा वि य किंकरा होति ॥ ४३२ ॥ तिक्खं खग्गं माला दुजय-रिउणो सुहंकरा सुयी । हालाहलं पि अमियं महावया संपया होदि ॥ ४३३ ॥ अलिय-वयणं पि सचं उजम-रहिएं वि लच्छि-संपत्ती । धम्म-पहावेण णरो अणओ वि सुहंकरो होदि ॥ ४३४ ॥ देवो वि धम्म-चत्तो मिच्छत्त-वसेण तरु-वरो होदि । चक्की वि धम्म-रहिओ णिवेडइ णरए ण संदेहो" ॥ ४३५ ॥ धम्म-विहूणो" जीवो कुणइ असकं पि साहसं जैइ वि। "तो ण वि पाँवदि इ8 सुह अणिटुं परं लँहदि ॥ ४३६ ॥ इय पञ्चक्खं पेच्छेह धम्माहम्माण विविह-माहप्पं । धम्मं आयरह सया पावं दूरेण परिहरह ॥ ४३७ ॥ बारस-भेओ भणिओ णिजर-हेॐ तेवो समासेण । तस्स पयारा एदे भणिजमाणा मुणेयव्वा ॥ ४३८ ॥ उवसमणो अक्खाणं उववासो वर्णिदो समासेणें । तम्हा मुंजंता वि य जिदिदिया होंति उववासा ॥ ४३९॥ 1ब लच्छी। २ग भाइरं। ३ ब दीसइ। ४ ब (?) म परयारं । ५ लमग सव्वस्स । इलग हवह। लमसग कुणई। ८ ब संभवइ । ९ म होंदि । १० ब (१) लग सुहंकरो सुयणो। "स रहिये। १२ व णिवडय। १३ लस (1) ग ण संपदे होदि। १४ ब विहीणो। १५ ब जय । १६ब तो विणु पावइ इ8। १७स पावइ। १८ लमसग लहइ (ई?.)। १९ लगस पिच्छिय, मपिपिछह (१)। २०स धम्माधम्माण। २१ धम्माणुवेक्खा ॥ वारसभेओ इत्यादि । २२ बग हे (?)। २१ ब बनो। २४ ब वृण्णिभो। २५ लमसग मुर्णिदेहि ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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