Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४३६
- कत्तिगेयाणुप्पेक्खा
[गा०४४०जो मण-इंदिय-विजई इहभव-परलोय-सोक्खं-णिरवेक्खो। अप्पाणे वियं णिवसइ सज्झाय-परायणो होदि ॥ ४४० ॥ कम्माण णिजर8 आहारं परिहरेइ लीलाए। एग-दिणांदि-पमाणं तस्स तवं अणसणं होदि ॥ ४४१ ॥' उववासं कुवाणो आरंभं जो करेदि मोहादो। तस्स किलेसो अपरं कम्माणं णेव णिजरणं ॥ ४४२ ॥ आहार-गिद्धि-रहिओ चरिया-मग्गेण पासुगं जोग्गं । अप्पयरं जो भुंजइ अवमोदरियं तवं तस्स ॥ ४४३ ॥ जो पुण कित्ति-णिमित्तं मायाए मिट्ठ-भिक्ख-लाहटुं। अप्पं भुजदि भोजं तस्स तवं णिप्फलं बिदियं ॥ ४४४ ॥ ऐगादि-गिह-पमाणं किची संकप्प-कप्पियं विरसं। भोजं पसु व भुजदि वित्ति-पमाणं तवो तस्स ॥ ४४५॥ संसार-दुक्ख-तट्ठो विस-सम-विसंयं विचिंतमाणो जो। णीरस-भोजं भुंजइ रस-चाओ तस्स सुविसुद्धो ॥ ४४६ ॥ जो राय-दोस-हेदूं आसण-सिजादियं परिचयइ । अप्पा णिविसय सया तस्स तवो पंचमो परमो ॥ ४४७ ॥ पूर्यादिसु णिरवेक्खो संसार-सरीर-भोर्ग-णिविण्णो । अभंतर-तव-कुसलो" उवसम-सीलो महासंतो ॥ ४४८॥ जो णिवेसेदि मसाणे वण-गहणे णिज्जणे महाभीमे । अण्णत्थ वि एयंते तस्स वि एवं तवं होदि ॥ ४४९ ॥ दुस्सह-उवसग्ग-जई आतावण-सीय-वाय-खिण्णो वि। जो णवि खेदं गच्छदि काय-किलेसो तेवो तस्स ॥ ४५०॥
व सुक्ख । २ ब वि णिवेसइ। ३ ब एकदिणाइ । ४ व अणसणं ॥ उववार्स इत्यादि। ५ग चरिना। ६ पासुकं योग्गं । लग जोग्गं । अवमोदरियं तवं होदि तस्स भिक्खु ॥ ७म अवमोयरियं ।
ब मायाये मिट्ट भक्षलाहट, लग मिट्रिभिक्खलाहिटुं, म लाहिटुं, स मिट्रिभिक्ख । ९ब एयादि स एमादि। १०लग किंवा। ११ब तओ। १२स विसए। १३ ब विसयं पि चिंतमाणो। १४ब हेऊ। १५ लसग पूजादिसु, म पुजा । १६ ब भोय । १७ बसग कुशलो । १८ स महासत्तो। १९ब णिवसेह। २० लमग गहिणे। २१ब एयंतं, लमस (?) ग एअते। २२ ब युगलं । २५ लग तर (मो?)।
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