Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४२८ -कत्तिगेयाणुप्पैक्खा
[गा० ३४९एवं पंच-पयारं अणत्थ-दंडं दुहावहं णिचं । जो परिहरेदि' णाणी गुणवदी सो हवे बिदिओ ॥ ३४९ ॥ जाणित्ता संपत्ती भोयण-तंबोल-वत्थमादीणं'। जं परिमाणं कीरदि भोउर्वंभोयं वयं तस्स ॥ ३५० ॥ जो परिहरेइ संतं तस्स वयं थुवदे सुरिंदो वि। जो मण-लड्डु व भक्खदि तस्स वयं अप्प-सिद्धियरं ॥ ३५१ ॥ सामाइयस्स करणे खेत्तं कालं च आसणं विलंओ। मण-वयण-काय-सुद्धी णायचा हुंति सत्तेव ॥ ३५२ ॥ जत्थ ण कलयल-सदो बहु-जण-संघट्टणं ण जत्थत्थि । जत्थ ण दंसादीया एस पसत्थो हवे देसो ॥ ३५३ ॥ पुवण्हे मज्झण्हे अवरण्हे तिहि वि णालिया-छक्को। सामाइयस्स कालो सविणय-णिस्सेस-णिहिट्ठो ॥ ३५४ ॥ बंधित्ता पजंक अहवा उड्डेण उब्भओ ठिच्चा। काल-पमाणं किचा इंदिय-वावार-वजिदो "होउं ॥ ३५५ ॥ जिण-वयणेयग्ग-मणो संबुर्ड-काओ य अंजलिं किचा। स-सरूवे संलीणो वंदण-अत्थं विचिंतंतो ॥ ३५६ ॥ किच्चा देस-पमाणं सर्व-सावज-वैजिदो होउं । जो कुछदि सामइयं सो मुणि-सरिसो हवे ताव ॥ ३५७ ॥ ण्हाण-विलेवण-भूसण-इत्थी-संसग्ग-गंध-धूवादी । जो परिहरेदिणाणी वेरग्गा सणं किच्चा ॥ ३५८ ॥ दोस वि पवेसु सया उववासं एय-भत्त-णिधियडी।
जो कुणदि एवमाई तस्स वयं पोसहं बिदियं ॥ ३५९ ॥
लमसग परिहरेइ। २ ग गुणव्वई, स गुणव्वदं, ब गुणग्वदं होदि तं विदियं । ३ लसग वत्यमाईण। ४ ब भोउवभोर्ड (?) तं तिदिओ (म तदियं)। ५ लमसग सुरिंदेहि। ६ ल मणुलडू, मस मणलदुव, ग मणलढु। ७ स सिद्धिकरं । ८ ब गुणवतनिरूपणं । सामाइयस्स इत्यादि। ९ब खितं । १.म विनउ । ११ लमसग सई। १२ ब तिहि......छक्के (?)। १३ लग उभउ ठिच्या, म उमड ट्रिया, स उढेण ऊभवो। १४ ल होउ। १५ ब वयणे एयग्ग। १६ बग संपुड, [संवुड ?] .ब वजिलो होऊ, ग वजिदो होउ। १८ ल हवे सावउ, मस हवे साउ, ग हवे सावउं। १९ व सिक्खावर्ष पढम। ण्हाण इत्यादि। २० लसग गंधधूवदीवादि, म धूवादि। २१ब परिहरेह। २२ लम रग्ग (ग चेहग्गा, स वेणा) भरणभूसणं किच्चा ।
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