Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
________________
४०७
गा० ११६]
-- ९. णिजराणुवेक्खामिच्छादो सहिट्ठी असंख-गुण-कम्म-णिजरा होदि । तत्तो अणुवय-धारी तत्तो य महत्वई णाणी ॥ १०६ ॥ पढम-कसाय-चउण्हं विजोजओ तह य खंवय-सीलो य । दंसण-मोह-तियस्स य तत्तो उवसमर्ग-चत्तारि ॥ १०७॥ खवगो य खीण-मोहो सजोइ-णाहो तहाँ अजोईया । ऍदे उवार उवरिं असंख-गुण-कम्म-णिज्जरया ॥ १०८ ॥ जो विसहदि दुब्बयणं साहम्मिय-हीलणं च उवसग्गं । जिणिऊण कसाय-रिलं तस्स हवे णिजरा विउलाँ ॥ १०९ ॥ रिण-मोयणं 4 मण्णइ जो उवसग्गं परीसहं तिवं । पाव-फलं मे एवं मया वि जं संचिंदं पुवं ॥ ११ ॥ जो चिंतेइ सरीरं ममत्त-जणयं विणस्सरं असुई । दंसण-णाण-चरित्तं सुह-जणयं णिम्मलं णिचं ॥ १११ ॥ अप्पाणं जो जिंदइ गुणवंताणं करेई बहु-माणं । मण-इंदियाण विजई स सरूव-परायणो होउ' ॥ ११२ ॥ तस्स य सहलो जम्मो तस्स य" पावरसँ णिजरा होदि। तस्स ये पुण्णं वड्डदि तस्स वि सोक्खं परं" होदि ॥ ११३॥ जो सम-सोक्ख-णिलीणो वारंवारं सरेइ अप्पाणं ।। इंदिय-कसाय-विजई तस्स हवे णिजरा परमा ॥ ११४ ॥"
१०. लोगाणुवेक्खा सवायासमैणंतं तस्स य बहु-मज्झ-संठिओ" लोओ। सो केण वि णेवं कओ ण य धरिओ हरि-हरादीहि ॥ ११५ ॥ अण्णोण्ण-पवेसेण य दवाणं अच्छणं हवे लोओ।
दवाणं णिचत्तो लोयस्स वि मुणहैं णिचत्तं ॥ ११६ ॥ १ स खवइ । २ ब उवसमग्ग। ३ ब सयोगिणाहो, ब सजोयणाणो। ४ब तह अयोगीय । ५द एदो। ६ब साहम्मिहीं। ७ ब णिजर विउलं। ८ लमसग मोयणुष्व ।। ९ ब संचयं । १०ब असुहं । ११ लमसग करेदि। १२ ग होऊ [ होइ] । १३ लमसग वि । १४ ग पाकस्स । १५ लमसग विय। १६ लमसग य। १७ ब परो। १८ लमसग सुक्ख । १९ ब निजराणुवेखा । २० ग सव्वागासंम। २१ बम संठिउ, लग संठियो, स संदिगो। २२ म ण्णेय, सगणेय । २३ लसग भवे। २४ ब मुणहि । २५ ग णिचित्तं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594