Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४२३
-गा० ३०१]
-- ११. बोहिदुल्लहाणुवेक्खाअह लहदि अजवत्तं तह ण वि पावेइ उत्तम गोत्तं । उत्तम-कुले वि पत्ते धण-हीणो जायदे जीवो ॥ २९१ ॥ अह धण-सहिदो होदि हु इंदिय-परिपुण्णदा तदो दुलहा । अह इंदिय-संपुण्णो तह वि सरोओ हवे देहो ॥ २९२ ॥ अह णीरोओ होदि हु तह वि ण पावेदि जीवियं सुइरं। अह चिर-कालं जीवदि तो सीलं णेव पावेदि ॥ २९३॥ अह होदि सील-जुत्तो तो वि ण पावेइ साहु-संसग्गं । अह तं पि कह वि पावदि सम्मत्तं तह वि अइदुलहं ॥ २९४ ॥ सम्मत्ते वि य लद्धे चारित्तं णेव गिम्हदे "जीवो। अह कह वि तं पि गिम्हदि तो पाले, ण सक्केदि ॥ २९५ ॥ रयणत्तये वि लद्धे तिव-कसायं करेदि जइ जीवो। तो दुग्गईसु गच्छदि पण?-रयणत्तओ होउं ॥ २९६ ॥ रयणु व जलहि-पडियं मणुयत्तं तं पिहोदि अइदुलहं । एवं सुणिच्छइत्ता मिच्छ-कसाए य वजेह ॥ २९७ ॥ अहवा देवो होदि हु तत्थ वि पावेदि कह व सम्मत्तं । तो तव-चरणं ण लहदि देस-जमं सील-लेसं पि ॥ २९८॥ मणुव-गईएँ वि तओ मणुव-गईएँ महदं सयलं । मणुव-गदीए झाणं मणुव-गदीए वि णिवाणं ॥ २९९ ॥ इय र्दुलहं मणुयत्तं लहिऊणं जे रमंति विसएसु । ते लहिये दिव-रयणं भूइ-णिमित्तं पंजालंति ॥ ३०॥ इय सब-दुलह-दुलहं दसण-णाणं तहा चरित्तं च । मुणिऊण य संसारे महायरं कुणह "तिण्हं पि ॥ ३०१॥"
१ लमग लहइ, स लहई। २ ब अजवंत, लमग अजवंतं, स अर्जवंतं, [अजवत्तं]। ३ लम सहिमओ, ग सहिउ । ४ लसग पावेइ । ५ बस सुयरं । ६ बग शीलं । ७ लसग पावेइ । ८ ग शीलयुत्तो। ९ लमसग तह वि । १० ब गिन्हदे, गिन्हदि । ११ ग जीओ। १२ ब होउ (?)। १३ [रयणं व]। १४ ब तो मणुयत्तं पि। १५ ब होइ। १६ ब सुणिच्छयंतो (?)। १७ ब वजय (?), सग वजह । १८ म देसवयं। १९ ब गयए। २० म गदीए। २१ ब महब्वयं । २२ व गदीये। २३ ग झाणं। २४ ग दुल्लहं। २५ स लहइ। २६ लग भूय-। २७ स पजालेदि। २८ बग तिन्हं। २९ ब दुल्लहानुवोहि अनुप्रेक्षा ॥ ११ ॥
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