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गा० ११६]
-- ९. णिजराणुवेक्खामिच्छादो सहिट्ठी असंख-गुण-कम्म-णिजरा होदि । तत्तो अणुवय-धारी तत्तो य महत्वई णाणी ॥ १०६ ॥ पढम-कसाय-चउण्हं विजोजओ तह य खंवय-सीलो य । दंसण-मोह-तियस्स य तत्तो उवसमर्ग-चत्तारि ॥ १०७॥ खवगो य खीण-मोहो सजोइ-णाहो तहाँ अजोईया । ऍदे उवार उवरिं असंख-गुण-कम्म-णिज्जरया ॥ १०८ ॥ जो विसहदि दुब्बयणं साहम्मिय-हीलणं च उवसग्गं । जिणिऊण कसाय-रिलं तस्स हवे णिजरा विउलाँ ॥ १०९ ॥ रिण-मोयणं 4 मण्णइ जो उवसग्गं परीसहं तिवं । पाव-फलं मे एवं मया वि जं संचिंदं पुवं ॥ ११ ॥ जो चिंतेइ सरीरं ममत्त-जणयं विणस्सरं असुई । दंसण-णाण-चरित्तं सुह-जणयं णिम्मलं णिचं ॥ १११ ॥ अप्पाणं जो जिंदइ गुणवंताणं करेई बहु-माणं । मण-इंदियाण विजई स सरूव-परायणो होउ' ॥ ११२ ॥ तस्स य सहलो जम्मो तस्स य" पावरसँ णिजरा होदि। तस्स ये पुण्णं वड्डदि तस्स वि सोक्खं परं" होदि ॥ ११३॥ जो सम-सोक्ख-णिलीणो वारंवारं सरेइ अप्पाणं ।। इंदिय-कसाय-विजई तस्स हवे णिजरा परमा ॥ ११४ ॥"
१०. लोगाणुवेक्खा सवायासमैणंतं तस्स य बहु-मज्झ-संठिओ" लोओ। सो केण वि णेवं कओ ण य धरिओ हरि-हरादीहि ॥ ११५ ॥ अण्णोण्ण-पवेसेण य दवाणं अच्छणं हवे लोओ।
दवाणं णिचत्तो लोयस्स वि मुणहैं णिचत्तं ॥ ११६ ॥ १ स खवइ । २ ब उवसमग्ग। ३ ब सयोगिणाहो, ब सजोयणाणो। ४ब तह अयोगीय । ५द एदो। ६ब साहम्मिहीं। ७ ब णिजर विउलं। ८ लमसग मोयणुष्व ।। ९ ब संचयं । १०ब असुहं । ११ लमसग करेदि। १२ ग होऊ [ होइ] । १३ लमसग वि । १४ ग पाकस्स । १५ लमसग विय। १६ लमसग य। १७ ब परो। १८ लमसग सुक्ख । १९ ब निजराणुवेखा । २० ग सव्वागासंम। २१ बम संठिउ, लग संठियो, स संदिगो। २२ म ण्णेय, सगणेय । २३ लसग भवे। २४ ब मुणहि । २५ ग णिचित्तं ।
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