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-कत्तिगेयाणुप्पेक्खा
[गा० ९५८. संवराणुवेक्खा सम्मत्तं देस-वयं महत्वयं तह जओ कसायाणं । एदे संवर-णामा जोगाभावो तहा चेव ॥ ९५ ॥ गुत्ती समिदी धम्मो अणुवेक्खा तह य परिसह-जओ वि। उकिटं चारित्तं संवर-हेर्दू विसेसेण ॥ ९६ ॥ गुत्ती जोग-णिरोहो समिदी य पमाद-वजणं चेव । धम्मो दया-पहाणो सुतर्त्त-चिंता अणुप्पेहा ॥ ९७ ॥ सो वि परीसह-विजओ छुहादि-पीडाण अइ-रउहाणं । सवणाणं च मुणीणं उवसम-भावेण जं सहणं ॥ ९८॥ अप्प-सरूवं वत्थु चत्तं रायादिएहि दोसेहिं।। सज्झाणम्मि णिलीणं तं जाणसु उत्तमं चरणं ॥ ९९ ॥ एदे संवर-हेर्दू वियारमाणो वि जो ण आयरइ । सो भैमइ चिरं कालं संसारे दुक्ख-संतत्तो ॥१०॥ जो पुणे विसय-विरत्तो अप्पाणं सर्वदो वि संवरइ।। मणहर-विसऍहितो तस्स फुडं संवरो होदि ॥ १०१॥५
९. णिजराणुवेक्खा बारस-विहेण तवसा णियाण-रहियस्स णिजरा होदि । वेरग्ग-भावणादो णिरहंकारस्सँ णाणिस्स ॥ १०२॥ सधेसि कम्माणं सत्ति-विवाओ हवेइ अणुभाओ। तदणंतरं तु सडणं कम्माणं णिजरा जाण ॥ १०३ ॥ सा घृण दुविहा णेया सकाल-पत्ता तवेण कयमाणा। चादुगदी]" पढमा वय-जुत्ताणं हवे बिदिया ॥ १०४ ॥ उवसम-भाव-तवाणं जह जह चड्डी हवेई साहूणं । तह तह णिजर-वडी विसेसदो धम्म-सुक्कादो ॥ १०५ ॥
लमग तह चेय, स तह चैव। २ ब अणुवेहा, सग विक्खा। ३ लमग तह परीसह, स तह य परीसह। ४ब हेऊ। ५मस पमाय- ६ ब सुतस्थ-, लसग सुतच्च-। ७ ब अणुवेहा। ८ लमग छुहाइ-। ९ब विलीणं [१]। १० ब हेदूं, लसग हेहूँ,म हेदु।११ब भमेह [भमह य चिरकालं]। १२ ब पुणु। १३ ग विसइ.। १४ लमसग सव्वदा। १५ ब विसयहिंतो। १६ ब संवराणुवेक्खा। १७ लस कारिस्स। १८ब सत्त। १९ ल विवागो। २०ब पुणु। २१ब चाऊगदीणं, स चाउ। २२ म वुड्डी। २३ ब हवह। २४ द वुड्डी।
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