Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 535
________________ ४१६ - कत्तिगेयाणुष्पेक्खा [गा० २११का वि अउवा दीसदि पुग्गल-दवस्स एरिसी सत्ती। केवल-णाण-संहावो विणासिदो जाइ जीवस्स ॥ २११ ॥ धम्ममधम्मं दवं गमण-ट्ठाणाण कारणं कमसो। जीवाण पुग्गलाणं बिण्णि वि लोग-प्पमाणाणि ॥ २१२ ॥ सयलाणं दवाणं जं दातुं सकदे हि अवगासं । तं आयासं दुविहं लोयालोयाण भेऍण ॥ २१३ ॥ सवाणं दवाणं अवगाहण-सत्ति अत्थि परमत्थं । जह भसम-पाणियाणं जीव-पएसाण बहुयाणं ॥ २१४ ॥ जदि ण हवदि सा सत्ती सहाव-भूदा हि सब-दवाणं । एंकेक्कास-पएसे कह ता सवाणि वटुंति ॥ २१५ ॥ सवाणं दवाणं परिणामं जो करेदि सो कालो। एकेक्कास-पएसे सो वट्टदि एक्कको चेव ॥ २१६ ॥ णिय-णिय-परिणामाणं णिय-णिय-दवं पि कारणं होदि । अण्णं बाहिर-दवं णिमित्त-मित्तं वियाणेहें ॥ २१७ ॥ सवाणं दवाणं जो उवयारो हवेइ अण्णोण्णं । सो चिय कारण-भावो हवदि हु सहयारि-भावेण ॥ २१८ ॥ कालाइ-लद्धि-जुत्ता णाणा-सत्तीहि संजुदा अत्था । परिणममाणा हि संयं ण सक्कदे को वि वारेदं ॥ २१९ ॥ जीवाण पुग्गलाणं जे सुहुमा बादरा य पज्जाया। तीदाणागद-भूदा सो ववहारो हवे कालो ॥ २२० ॥ तेस अतीदा णता अणत-गुणिदा य भावि-पजाया। ऐक्को वि वट्टमाणो एत्तिय-मेत्तो वि सो कालो ॥ २२१ ॥" पुच-परिणाम-जुत्तं कारण-भावेण वट्टदे दवं । उत्तर-परिणाम-जुदं तं चिय कजं हवे णियमा ॥ २२२ ॥ १ बस एरसी। २ मस सहाओ, ग सहाउ। ३ग विणासदो। ४ व पुद्गलनिरूपणं ॥ धम्म इत्यादि। ५ ब लोय-। ६ सग दुविहा । ७ म भेएहिं, ग भेदेण। ८ ब सत्ती, स अवगाहणदाणसत्ति परमत्थं, ग सत्ति परमत्थं । ९मस पएसाण जाण बहुआणं, ग पयेसाण जाण वहुआणं । १० म एकेकास, ग एकेकास । ११म किह । १२ मसग एक्किको। १३ मणिमित्त-मत्तं (?)। १४ब वियाणेहि (?)। १५ ग सतीहिं संयुदा। १६ म सया। १७ ब वायरा। १८ग अतीदाऽणंता। १९ मग एको। २०बग मित्तो। २१ ब द्रव्यचतुष्कनिरूपणं । पुब्व इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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