Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४१८
-कत्तिगेयाणुप्पैक्खा
[गा० २३५अणु-परिमाणं तचं अंस-विहीणं च मण्णदे जदि हि। तो संबंध-अभावो तत्तो वि ण कज-संसिद्धी ॥ २३५ ॥ सवाणं दवाणं दव-सरूवेण होदि एयत्तं ।। णिय-णिय-गुण-भेएण हि सवाणि वि होंति भिण्णाणि ॥ २३६ ॥ जो अत्थो पडिसमयं उप्पाद-वय-धुवत्त-सब्भावो। गुण-पजय-परिणामो सो संतो" भण्णदे समए ॥ २३७ ॥ पडिसमयं परिणामो पुवो णस्सेदि जायदे अण्णो। वत्थु-विणासो पढमो उववादो भर्णणदे विदिओ ॥ २३८ ॥ णो उप्पजदि जीवो दव-सरूवेण णे णस्सेदि । तं चेव दव-मित्तं णिच्चत्तं जाण जीवस्स ॥ २३९ ॥ अण्णइ-रूवं दवं विसेस-रूवो हवेइ पजावो। दई पि विसेसेण हि उप्पजदि णस्सदे सददं ॥ २४०॥ सरिसो जो परिणामो अणाइ-णिहणो हवे गुणो सो हि। सो सामण्ण-सरूवो उप्पज्जदि णस्सदे णेय ॥ २४१ ॥ सो वि विणस्सदि जायदि विसेस-रूवेण सव्व-दवेसु । दव-गुण-पजयाणं एयत्तं वत्थु परमत्थं ॥ २४२ ॥ जदि दवे पजाया वि विजमाणी तिरोहिदा संति । ता उप्पत्ती विहला पडिपिहिदे देवदत्ते व ॥ २४३ ॥ साण पज्जयाणं अविजमाणाण होदि उप्पत्ती। कालाई-लद्धीए अणाइ-णिहणम्मि दवम्नि ॥ २४४ ॥ दवाण पजयाणं धम्म-विवक्खाएँ कीरए भेओ" । वत्थु-सरूवेण पुणो ण हि भेदो सदे काउं ॥ २४५ ॥ जदि वत्थुदो विभेदो पजय-दवाण मण्णसे मूढ ।
तो णिरवेक्खा सिद्धी दोण्हं पि य पावदे णियमा ॥ २४६ ॥
लमसग संबंधाभावो। २लसग संसिद्धि। ३ लग परिणामो संतो भण्णते। म सत्तो। ५ ब-पुस्तके उ उप्पजदि इत्यादि प्रथमं तदनन्तरं पडिसमयं इत्यादि। ६ब भण्णइ विदिउ। ७बण उ।
लमसग णेय। ९ व जाणि। १० लमसग पजाओ (उ)। ११ ब सरिसउऽजो प,ससो परिणामो जो। १२ ब वि। १३ म वत्थु। ५४ लग विवजमाणा। १५ब देवदत्ते ब्व, लमसग देवदत्ति व्व। १६ स सञ्चाणं दव्वाणं पज्जायाणं अविजमाणाणं उप्पत्ती। कालाइ ...... दवम्हि । १७ बम विवाक्खाय, स ववक्खाए। १८ व कीरइ। १९ व भेउ, मस भेओ (?)। २० ब विभेमओ। २१ म मणस मूढो, स मणये, ग माणसे। २२ ब दुई।
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