Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 527
________________ ४०८ - कत्तिगेयाणुप्पेक्खा [गा०११७ परिणाम-सहावादो पडिसमयं परिणमंति दवाणि । तेसिं परिणामादो लोयस्स वि मुणह' परिणामं ॥ ११७ ॥ सत्तेक्क-पंच-इक्का मूले मज्झे तहेव बंभंते। लोयंते रजओ पुवावरदो य वित्थारो ॥ ११८ ॥ दक्षिण-उत्तरदो पुणं सत्त वि रजू हवंति सवत्थ । उड़े चउदह रज सत्त वि रजू घणो लोओ ॥ ११९ ॥ मेरुस्स हिट-भाए' सत्त वि रज हवेइ अह-लोओ। उडम्मि उड्ड-लोओ मेरु-समो मज्झिमो लोओ ॥ १२० ॥ दीसंति जत्थ अत्था जीवादीया स भण्णदे लोओ।। तस्स सिहरम्मि सिद्धा अंत-विहीणा विरीयते ॥ १२१ ॥ एइंदिऍहिँ भरिदो पंच-पयारेहिँ सवदो लोओ। तस-णाडीएँ वि तसा ण बाहिरा होंति सवत्थ ॥ १२२ ॥ पुण्णा वि अपुण्णा वि य थूला जीवा हवंति साहारा । छबिह-सँहुमा जीवा लोयायासे वि सवत्थ ॥ १२३ ॥ पुढेवी-जलग्गि-वाऊ चत्तारि वि होंति" बायरा सुहुमा । साहारण-पत्तेया वणफंदी पंचमा दुविहा ॥ १२४ ॥ साहारणा वि दुविहा अणाइ-कोला य साइ-काला य । ते वि य बादर-सुहमा सेसा पुँण बायरा सच्चे ॥ १२५ ॥ साहारणाणि जेसिं आहारुस्सास-काय-आऊणि ।। ते साहारण-जीवा गंताणंत-प्पमाणाणं ॥ १२६ ॥ ण य जेसि पडिखलणं (ढवी-तोएहिँ अग्गि-वाएहिं । ते जाण सुहुम-काया इयरा पुणे थूल-काया य ॥ १२७ ॥ १ ल तच्चाणि । २ ब मुणहि । ३ लग सत्तेक, म सत्तिक्क, स सतेक। ४ग पुष्वापरदो। ५ व पुणु। ६ लसग हवेति । ७ ब उई [?], लमग उड्डो, स उद्दो । ८ लसग चउदस, म चउहस । ९ लग भागे। १०ब हवेह अहो लोउ [?], लसग हवे अहो लोओ, म हवेइ अह लोउ। ११ ब भण्णइ । १२ लमसग विरायंति । १३ बस दिएहि। १४ ब नाडिए । १५ बलमसग यपुण्णा। १६ बलसग छविह। १७ ब सुहमा। १८लग पुढवि। १९ ब हुंति । २० ब वणप्फदि। २१ लग अणाय । २२ लमस कालाइ साइकालाई। २३ ब ते पुणु बादर, ल ते चिय। २४ ब पुण। २५ ब युगलं । २६ म पुहई, लग पुहवी। २७ ब जाणि । २८ ब पुणु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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