Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 529
________________ ४१० - कत्तिगेयाणुःपेक्खा [गा० १४० एयक्खे चदु पाणा बि-ति-चउरिंदिय-असण्णि-सण्णीणं । छह सत्त अ8 णवयं दह पुण्णाणं कमे पाणा ॥ १४०॥ दुविहाणमपुण्णाणं इंगि-वि-ति-चउरक्ख-अंतिम-दुगाणं । तिय चउ पण छह सत्त य कमेण पाणा मुणेयवा ॥ १४१ ॥ वि-ति-चउरक्खा जीवा हवंति णियमेण कम्म-भूमीसु । चरिमे दीवे अद्धे चरम-समुद्दे वि सवेसु ॥ १४२ ॥ माणुस-खित्तस्स बहिं चरिमे दीवस्स अद्धयं जीव । संवत्थे वि तिरिच्छा हिमँवद-तिरिएहिं सारिच्छा ॥ १४३ ॥ लवणोए कालोए अंतिम-जलहिम्मि जलयरों संति । सेस-समुद्देसु पुणो ण जलयरा संति णियमेण ॥ १४४ ॥ खरभाय-पंकभाए भावण-देवाण होति भवणाणि । वितर-देवाण तहा दुण्हं पि य तिरिय-लोयम्मैि ॥ १४५ ॥ जोइसियाण विमाणा रजू-मित्ते वि तिरिय-लोए वि" । कप्प-सुरा उड्डम्मैि य अह-लोए होंति" णेरइया ॥ १४६ ॥" बादर-पजत्ति-जुदा घण-आवलिया असंख-भागा दु । किंचूण-लोय-मित्ता तेऊ वाऊ जहा-कमसो ॥ १४७ ॥ पुढेवी-तोय-सरीरा पत्तेया वि य पइट्ठिया इयरा । होति' असंखा सेढी पुण्णापुण्णा य तह य तसा ॥ १४८ ॥ बादर-लैद्धि-अपुण्णा असंख-लोया हवंति पत्तेया। तह य अपुण्णा सुहुमा पुण्णा वि य संख-गुण-गणिया ॥ १४९ ।। सिद्धा संति अणंता सिद्धाहितो" अणंत-गुण-गुणिया। होंति णिगोदा जीवा भागमणंतं अभवा य ॥ १५० ॥ सम्मुच्छिमाँ हु मणुया सेढियसंखिज-भाग-मित्ता हु। गन्भज-मणुया सवे संखिज्जा होंति णियमेण ॥ १५१ ॥२५ १ब सत्तट्र। २ग इग-। ३ल चरिम-। ४ग चरमे। ५ब जाम। ६लसग सम्वत्थि वि। ७ ब हिमवदितिरियेहि। ८ब अंतम। ९ लग जलचरा। १० ग बिंतर -। ११ लमसग तिरियलोए वि। १२ ब - लोए मि। १३ लग उडम्हि, स उद्दम्हि । १४ ब हुति । १५ ब स्थितित्वं ॥ बादर इत्यादि । १६ बग वादर। १७ सग किंचूणा। १८ ग पुढवीयतोय। १९ ब हुंति । २० ब वायर । २१ मसग लद्धियपुण्णा। २२ म सिद्धेहिंतो। २३ ब समुच्छिमा, लमस सम्मुच्छिया, ग समुच्छिया, २४ ब सेढिअसं। २५ ब संखाछ ॥ देवा वि इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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