Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 524
________________ गा०९४] - ६. असुइत्ताणुवेक्खासुट्ठ पवित्तं दवं सरस-सुगंधं मणोहरं जं पि। देह-णिहित्तं जायदि घिणावणं सुटु दुग्गंधं ॥ ८४ ॥ मणुयाणं असुइमयं विहिणा देहं विणिम्मियं जाण । तेर्सि विरमण-कजे ते पुण तत्थेचे अणुरत्ता ॥ ८५ ॥ एवंविहं पि देहं पिच्छंता वि य कुणंति अणुरायं । सेवंति आयरेण य अलद्ध-पुंचं ति मण्णंता ॥ ८६ ॥ जो पर-देह-विरत्तो णिय-देहे ण य करेदि अणुरायं । अप्प-संरूव-सुरत्तो असुइत्ते भावणा तस्स ॥ ८७ ॥ ७. आसवाणुवेक्खा मण-वयण-काय-जोया जीव-पएसाण फंदण-विसेसा। मोहोदएणं जुत्ता विजुदा वि य आसवा होंति ॥ ८८ ॥ मोह-विवाग-वसादो जे परिणामा हवंति जीवस्स । ते आसवा मुणिजसु मिच्छत्तीई अणेय-विहा ॥ ८९ ॥ कम्मं पुण्णं पावं हे" तेसिं च होंति सच्छिदरा।। मंद-कसाया सच्छा तिव-कसाया असच्छा हु ॥ ९ ॥ सवत्थ वि पिय-वयणं दुवयणे दुजणे वि खम-करणं । सव्वेसिं गुण-गहणं मंद-कसायाण दिटुंता ॥ ९१ ॥ अप्प-पंससण-करणं पुजेसु वि दोस-गहण-सीलतं । वेरै-धरणं च सुइरं तिव-कसायाण लिंगाणि ॥ ९२ ॥ एवं जाणंतो वि हु परिचयणीएँ वि जो ण परिहरइ । तस्सासवाणुवेक्खी सवा वि णिरत्थया होदि ॥ ९३ ॥ एदे मोहय-भावों जो परिवजेइ उवसमे लीणो। हेयं ति" मण्णमाणो आसव-अणुवेहेणं तस्स ॥ ९४ ॥" बसु (य),। २ लमसग मणुआणं। ३ ब विणिम्मिदं [?]। ४ ब पुणु तित्थेव। ५ लग पुब्व ति, म सेव त्ति। ६ लगस अप्पसुरुविसु । ७ब असुइत्तो। ८ब असुइत्ताणुवेक्खा, ममसुचित्वानुप्रेक्षा। ९ब जीवापइसाण। १० ब मोहोदइण। ११ स मुणिजहु। १२ बम मिच्छताइ। १३ ग हेड़, [हेऊ]। १४ ल खेरिधरणं, म वेरिध। १५ ब परच', ल परिवयणीये, सग णीये। १६ लमसग °णुपिक्खा। १७ लमसग मोहजभावा। १८ लमसग हेयमिदिम। १९लमसग अणुपेहणं। २० ब आश्रवाणुवेक्खा, म भावानुप्रेक्षा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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