Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 517
________________ ३९८ -कत्तिगेयाणुप्पेक्खा [गा०७सुरवणु-तडि व चवला इंदिय-विसया सुभिच्च-वग्गा य । दिट्ट-पणट्ठा सवे तुरय-गया रहवरादी य ॥ ७ ॥ पंथे पहिय-जणाणं जह संजोओ हवेई खण-मित्तं । बंधु-जणाणं च तहा संजोओ अद्धुओ होई ॥ ८॥ अइलालिओ वि देहो ण्हाण-सुयंधेहिँ विविह-भक्खेहिं । खण-मित्तेण वि विहडइ जल-भरिओ आम-घडओ व ॥९॥ जा सासया ण लच्छी चक्कहराणं पि पुण्णवंताणं । सा कि बंधेइ रई इयर-जणाणं अपुण्णाणं ॥ १०॥ कथं वि ण रमइ लच्छी कुलीण-धीरे वि पंडिए सूरे। पुजे धम्मिटे वि य सुवत्त-सुयणे महासत्ते ॥ ११ ॥ ता भुंजिजउ लच्छी दिजउ दाणे दया-पहाण । जा जल-तरंग-चवला दो-तिण्णि दिणाइ चिट्ठई ॥ १२ ॥ जो पुर्ण लच्छि संचदि ण य भुंजदि णेय देदि पत्तेसु । सो अप्पाणं वंचदि मणुयत्तं णिप्फलं तस्स ॥ १३ ॥ जो संचिऊण लच्छि धरणियले संठवेदि अइदूरे । सो पुरिसो तं लच्छिं पाहाण-समाणियं कुणदि ॥ १४ ॥ अणवरयं जो संचदि लच्छि ण य देदि णेय भुंजेदि । अप्पणिया वि य लच्छी पर-लच्छि-समाणिया तस्स ॥१५॥ लच्छी-संसत्त-मणो जो अप्पाणं धरेदि कटेण। . सो राइ-दाइयाणं कजं साहेदि मूढप्पा ॥ १६ ॥ जो वैवारदि लच्छिं बहु-विह-बुद्धीहिँ णेय तिप्पेदि । सघारंभ कुवदि रत्ति-दिणं तं पि चिंतेई ॥१७॥ १ब हवह। २ब हवेइ। ३ बय। ४ लमसगरई। ५ब विपुण्णाणं। ६ब कया वि। ७ लमसग सुरूवसु। ८ ब महासुत्ते । ९ लमसग दाणं । १० ब दिणाण तिट्टेइ। ११ बल पुणु । १२ ब लच्छी; लग लच्छि, मस लच्छी। १३ ब णेव । १४ ब मणुयत्तणं । १५ लच्छि यह पाठ प्रतियोंमें भनिश्चित है। १६ ब णेव । १७ ल साहेहि। १८ लग वढारय, मस वड्डारइ। १९ ब तप्पेदि, म तेप्पेदि। २० लगम तिवदि, स चंतवदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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