Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 519
________________ [गा० २९ - कत्तिगेयाणुप्पेक्खाअप्पाणं पिं चंयंतं जइ सक्कदि रक्खिंदु सुरिंदो वि । तो किं छंडदि सग्गं सबुत्तम-भोय-संजुतं ॥ २९॥ दंसण-णाण-चरित्तं सरणं सेवेह परम-सद्धाए । अण्णं किं पि ण सरणं संसारे संसरंताणं ॥ ३० ॥ अप्पा णं पि य सरणं खमादि-भावेहिँ परिणदो होदि । तिव्व-कसायाविट्ठो अप्पाणं हणदि अप्पेण ॥ ३१ ॥ ३. संसाराणुवेक्खा एक चयदि सरीरं अण्णं गिण्हेदि णव-णवं जीवो। पुणु पुर्ण अण्णं अण्णं गिण्हदि मुंचेदि बहु-वारं ॥ ३२ ॥ एवं जं संसरणं णाणा-देहेसु होदि जीवस्स । सो संसारो भण्णदि मिच्छ-कसाएहिँ जुत्तस्स ॥ ३३ ॥ पाव-उदयेण णरए जायदि जीवो सहेदि बहु-दुक्खं । पंच-पयारं विविहं अणोर्वमं अण्ण-दुक्खोहि ॥ ३४ ॥ असुरोदीरिय-दुक्खं सारीरं माणसं तहा विविहं। खित्तब्भवं च तिचं अण्णोण्ण-कयं च पंचविहं ॥ ३५ ॥ छिजइ तिल-तिल-मित्तं भिंदिज्जइ तिल-तिलंतरं सयलं । वैजग्गीऍ कढिजइ णिहप्पए पूय-कुंडैम्हि ॥ ३६ ॥ इच्छेवमाइ-दुक्खं जं गरएँ सहदि एय-समयम्हेिं । तं सयलं वण्णेदुं ण सक्कदे सहस-जीहो वि ॥ ३७॥ सचं पि होदि णरए खेत्त-सहावेण दुक्खदं असुहं । कुविदा वि सब-कालं अण्णोणं होंति णेरइयाँ ॥ ३८ ॥ अण्ण-भवे जो सुयणो सो वि य णरएं हणेइ अइ-कुविदो। एवं तिव-विवागं बहु-कालं विसहदे दुक्खं ॥ ३९॥ लग च। २ ब चवंतो। ३ ब रक्खियं, ग रक्खिदो। ४ग छडिदि। ५ लमसग सेवेहि । लसग परिणदं । म गाथाके अन्त्यमें 'असरणानुप्रेक्षा ॥२॥ ८स पुण पुण। ९ब मधेदि। १०लमग हवदि। ११ लमग पाउदयेण, स पामोदएण। १२ब अनोवमं अन । १३ लमसग भण्णुण्ण । १४ब बजग्गिइ। १५ब कुंडंमि, स कुंडम्मि १६ बनिरह। १७ब समियंमि, म समयंमि (१)। १८ लमग खित्त । १९ लमसग अण्णुण्णं। २०[हंति]। २१ब नेरइया । २२ बनरह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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