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खामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा
[गा० १७५[छाया-अनुधरीकः कुन्थुः काणमक्षिका च शालिसिक्थः च । पर्याप्तानां प्रसानां जघन्यदेहः विनिर्दिष्टः॥] पर्याप्तानां प्रसानां पर्याप्तिप्राप्तानां द्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियजीवानां जघन्यदेहोदयः जघन्यशरीरावगाहः । अणुद्धरीय द्वीन्द्रियजन्तुविशेषः । कुन्योरपि सूक्ष्मो जीवः अणुद्धरी कथ्यते । त्रीन्द्रियः कुन्थुजीवः। चतुरिन्द्रियः काणमक्षिका । लोके मिसिनामगेरुवानामजीवाः। पञ्चेन्द्रियः शालिशिक्थकाख्यो मत्स्यश्च । एतेषां पर्याप्तानां जघन्यदेहो निर्दिष्टः, कथितो जिनैरिति शेषः । तथा गोम्मटसारे प्रोक्तं च । “वितिचपपुण्णजहण्णं अणुद्धरीकुंथुकाणमच्छीसु । सित्थयमच्छे विदंगुलसंखं संखगुणिदकमा ॥” द्वित्रिचतुःपञ्चेन्द्रियपर्याप्तकेषु यथासंख्यं अणुद्धरीकुन्थुकाणमक्षिकाधिक्थमत्स्यजीवेषु जघन्यावगाहविशिष्टशरीरावष्टब्धप्रदेशप्रमाणं वृन्दालसंख्यातकभागमादिं कृत्वा संख्यातगुणितक्रमेण भवति ६ द्वि.प. (अणुद्धरी)/ 4000६ त्रि.प (कुन्थु)/9..।६च. प. (काणमक्षिका)/0. ६ पं. प. (मत्स्य )/.। एषामिदानी व्यासायामोत्सेधानामुपदेशो नास्तीति घनफलमेवोकम् ॥ गोम्मटसारोक्तसर्वजघन्योस्कृष्टशरीरावगाहनखामिनौ निर्दिशति । "सुहुमणिगोदअपजत्तयस्स जादस्स तदियसमयम्मि । अंगुलअसंखभागं जहण्णमुकस्सयं मच्छे ॥" सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकस्य तद्भवे ऋजुगत्योत्पन्नस्य तृतीयसमये घनाकुलासंख्यातेकभागमात्रप्रदेशावगाहजाननी चाहिये ॥१७४ ॥ अब पूर्वोक्त जघन्य अवगाहनाके धारी दो इन्द्रिय आदि जीवोंको बतलाते हैं ॥ अर्थ-पर्याप्त त्रसोंकी जघन्य अवगाहनाके धारी अणुंधरी, कुंथु, काणमक्षिका, और शालिसिक्थक नामक. मत्स्य बतलाये हैं ॥ भावार्थ-पर्याप्तक त्रसजीवोंमेंसे दोइन्द्रिय जीवकी जघन्य अवगाहनाका धारी अणुंधरी नामक जन्तुविशेष है, यह कुन्थुसे भी सूक्ष्म होता है । तेइन्द्रिय जीवकी जघन्य अवगाहनाका धारी कुन्थु जीव है । चौइन्द्रिय जीवकी जघन्य अवगाहनाका धारी काणमक्षिका नामका जीव है जिसे लोग गेरुआ कहते हैं । पञ्चेन्द्रिय जीवकी जघन्य अवगाहनाका धारी तन्दुल मत्स्य है । गोम्मटसारमें भी कहा है-पर्याप्त दोइन्द्रियोंमें अणुंधरी, तेइन्द्रियोंमें कुंथु, चौइन्द्रियोंमें काणमक्षिका, पञ्चेन्द्रियोंमें तन्दुल मत्स्य इन जीवोंके जघन्य अवगाहनाके धारी शरीर जितना क्षेत्र रोकते हैं उसके प्रदेशोंका प्रमाण घनांगुलके संख्यातवें भागसे लगाकर क्रमसे संख्यातगुणा २ जानना । अर्थात् चार बार संख्यातका भाग धनांगुलमें देनेसे जो आवे उतना दो इन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य अवगाहनाके प्रदेशोंका परिमाण होता है। तीन बार संख्यातका भाग धनांगुलमें देनेसे जो आवे उतना तेइन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य अवगाहनाके प्रदेशोंका परिमाण होता है । दो बार संख्यातका भाग धनांगुलमें देनेसे जो आवे उतना चौइन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य अवगाहनाके प्रदेशोंका प्रमाण होता है। एक बार संख्यातका भाग धनांगुलमें देनेसे जो आवे उतना पश्चेन्द्रिय पर्याप्तकी जघन्य अक्गाहनाके प्रदेशोंका प्रमाण होता है । आशय यह है कि शरीरकी अवगाहनाका मतलब है कि उस शरीरने कितना क्षेत्र रोका। जो शरीर जितना क्षेत्र रोकता है उस क्षेत्रमें जितने आकाशके प्रदेश होते हैं उतनी ही उस शरीरकी अवगाहना कही जाती है जैसा ऊपर बतलाया है। इन जीवोंके शरीरकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई का कथन नहीं मिलता । इससे इनका धनफल ही कहा है। गोम्मटसारमें सबसे जघन्य और सबसे उत्कृष्ट शरीरकी अवगाहनाके खामी बतलाये हैं सो यहां. बतलाते हैं । उसमें कहा है जो सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपर्याप्तक जीव उस पर्यायमें ऋजुगतिसे उत्पन्न हुआ हो उसके तीसरे समयमें धनांगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण अवगाहना होती है । यह अवगाहना सबसे
१ ग गोमा, क गोमट०.।
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