________________
-२७४ ]
१०. लोकानुप्रेक्षा
जो वट्टमाण-काले 'अत्थ-पज्जाय परिणदं अत्थं ।
संत साहदि सबं तंपि णयं उज्जुयं जाण ॥ २७४ ॥
[ छाया-यः वर्तमानकाले अर्थपर्यायपरिणतम् अर्थम् । सन्तं कथयति सर्व तम् अपि नयम् ऋजुकं जानीहि ॥ ] तमपि नयम् ऋजुसूत्रनयं जानीहि । ऋजु सरलम् अर्थपर्यायं सूत्रयति साधयति तन्त्रयति निश्चयं करोतीति ऋजुसूत्रः सचासौ नयः तम् ऋजुसूत्रनयं त्वं जानीहि विद्धि । तं कम् । यः ऋजुसूत्रनयः वर्तमानकाले प्रवर्तमानसमये एकस्मिन् समयलक्षणे सन्तं वर्तमानं विद्यमानं वा अर्थ जीवादिपदार्थं वस्तु साधयति सूत्रयति निश्चयीकरोति गृण्हातीति यावत् । कीदृक्षम् अर्थपर्यायपरिणतम् । अर्थपर्यायः सूक्ष्मं प्रतिक्षणध्वंसी उत्पादव्ययलक्षणः । ' सूक्ष्मं प्रतिक्षणध्वंसी पर्यायश्चार्थ - संज्ञकः ' । इति वचनात् । तत्र परिणतः तत्पर्यायं प्राप्तः, तम् अर्थपर्यायपरिणतं सूक्ष्म प्रतिक्षणपर्यायपरिणतम् अर्थ साधयति । सूक्ष्मऋजुसूत्रनयः, यथा एकसमयावस्थायी पर्यायः । स्थूलऋनुसूत्रः, यथा मनुष्यादिपर्यायास्तदायुः प्रमाणकालं तिष्ठतीति ऋजुसूत्रोऽपि द्वेधा । तथाहि । अतीतस्य विनष्टत्वे अनागतस्यासंजातत्वे व्यवहारस्याभावात् वर्तमानसमयमात्रविषय पर्यायमानग्राही ऋजुसूत्रनयः । नन्वेवं सति संव्यवहारलोपः स्यात् सत्यम् । अस्य ऋजुसूत्रस्य नयस्य विषयमात्र प्रदर्शनं विधीयते । लोकसंव्यवहारस्तु सर्वनयसमूहसाध्यो भवति । तेन ऋजुसूत्राश्रयेण संव्यवहारलोपो न भवति । यथा कश्चिन्मृतः तं दृष्ट्वा संसारोऽयं अनित्य इति कश्चिद्रवीति, न च सर्वसंसारोऽनित्यो वर्तते इति । एते नैगम संग्रहव्यव हारऋजुसूत्र नयाश्चत्वारः अर्थनयाः, अन्ये वक्ष्यमाणास्त्रयो नयाः शब्दनया इति ॥ २७४ ॥ अथ शब्दनयं समुट्टीकते
Jain Education International
१९७
1
विशेष संग्रहका भेदक व्यवहारनय जैसे जीवके दो भेद है - संसारी और मुक्त ॥ २७३ ॥ अब ऋजुसूत्र नयका खरूप कहते हैं । अर्थ- वर्तमान कालमें अर्थ पर्यायरूप परिणत अर्थको जो सत् रूप साधता है वह ऋजुसूत्र नय है ॥ भावार्थ - ऋजुसूत्र नय वर्तमान समयवर्ती पर्यायको ही ग्रहण करता है । इसका कहना है कि वस्तुकी अतीत पर्याय तो नष्ट हो चुकी और अनागत पर्याय अभी है ही नहीं । इसलिये न अतीत पर्यायसे काम चलता है और न भावि पर्यायसे काम चलता है । काम वर्तमान पर्यायसे ही चलता है । अतः यह नय वर्तमान पर्याय मात्रको ही ग्रहण करता है । शायद कोई कहे कि इस तरहसे तो सब व्यवहारका लोप होजायेगा; क्योंकि जिसे हमने कर्ज दिया था वह तो अतीत हो चुका। अब हम रुपया किससे लेंगे ? किन्तु बात ऐसी नहीं है । लोक व्यवहार सब नयोंसे चलता है एक ही नयको पकड़कर बैठ जानेसे लोक व्यवहार नहीं चल सकता । जैसे कोई मरा, उसे देखकर किसीने कहा कि संसार अनित्य है । तो इसका यह मतलब नहीं है कि सारा संसार कुछ दिनों में समाप्त हो जायेगा, इसी तरह यहाँ भी समझना चाहिये । अस्तु, वस्तु प्रतिसमय परिणमन करती है । सो एकसमयवर्ती वर्तमान पर्यायको अर्थपर्याय कहते हैं क्योंकि शास्त्रमें प्रतिसमय नष्ट होनेवाली सूक्ष्म पर्यायको अर्थपर्याय कहा है । उस सूक्ष्म क्षणवर्ती वर्तमान अर्थपर्यायसहित वस्तु सूक्ष्मऋजुसूत्र नयका विषय है । ऋजुसूत्र नयके भी दो भेद हैं- सूक्ष्मऋजुसूत्र और स्थूल ऋजुसूत्र । ग्रन्थकारने उक्त गाथामें सूक्ष्मऋजुसूत्र नयका ही स्वरूप बतलाया है । जो स्थूल पर्यायको विषय करता है वह स्थूल ऋजुसूत्र नय है । जैसे मोटे तौरसे मनुष्य आदि पर्याय आयुपर्यन्त रहती हैं । अतः उसको ग्रहण करनेवाला नय स्थूल ऋजुसूत्र है। ये नैगम, संग्रह, व्यवहार और ऋजुसूत्र नय अर्थनय हैं, और आगे कहे जानेवाले शेष तीन नय शब्दनय हैं; क्यों कि वे शब्द की प्रधानतासे
१ [ अत्थं पजाय ] । २ ल ग तं वि णयं रुजणयं । ३ म रुजुणयं स रिजुणयं ( ? ) ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org