Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Swami Kumar, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 457
________________ ३३८ स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा [गा०४४९निष्पन्नमेव यत् संयतार्थमानीतं तद् अब्भाहिडं इति । तद्विविधम् । दूरदेशाद्वामान्तराद्वा आनीतम् अनाचरितम् , इतरदाचरितम् । १२ । इष्टिकादिभिः मृत्पिण्डेन वृत्त्या कवाटेनोपलेन वा स्थगितम् अपनीय दीयते यत्तदुद्भिन्नम्। १३ । [निश्रेण्यादिभिरारुह्य इत आगच्छत युष्माकमियं वसतिरिति या दीयते द्वितीया तृतीया वा भूमिः सा मालारोहमित्युच्यते । १४] राजामात्यादिमिर्भयमुपदर्य परकीयं यद्दीयते तत् अच्छेज इति । १५ । अनिसृष्टं द्वेधा गृहस्वामिना अनियुक्तेन या दीयते यदस्वामिनापि बालेन परवशवर्तिना दीयते द्विविधमनिसृष्टमिति । १६ । उत्पादनदोषो निरूप्यते । पञ्चविधानां धात्रीकर्मणाम् अन्यतमेनोत्पादिता वसतिः, काचिद्दारकं स्नपयति भूषयति क्रीडयति आशयति वापयति वा वसत्यर्थमेवमुत्पादितवसतिधोत्रीदोषदुष्टा । १। ग्रामान्तरात् नगरान्तराच देशात् अन्यदेशतो वा संबन्धिनां वार्ताम् अभिधायोत्पादिता दूतकर्मोत्पादिता । २। अङ्गं १ स्वरो २ व्यजनं ३ लक्षणं ४ छिन्नं ५ भौमं ६ स्वप्नः ७ अन्तरिक्षमिति एवंभूतनिमित्तोपदेशेन लब्धा वसतिर्निमित्तदोषदुष्टा । ३। आत्मनो जाति कुलमैश्वर्य वाऽभिधाय स्वमाहात्म्यप्रकटनेनोत्पादिता वसतिराजीवशब्देनोच्यते । ४ । भगवन् सर्वेषामाहारदानात् वा वसतिदानाच्च पुण्यं किमु महदुपजायते इति पृष्टे न भवतीत्युक्ते [गृहिजनः प्रतिकूलवचनरुष्टो वसतिं न प्रयच्छेदिति एवमिति ] तदनुकूलमुक्त्वा या उत्पादिता सा [वणिवग-शब्देनोच्यते । ५। अष्टविधया चिकित्सया लब्धा चिकित्सोत्पादिता।६। क्रोध [-मानमायालोभ-] उत्पादिताः च । ७-१०। गच्छतामागच्छतां च यतीनां भवदीयमेव गृहमाश्रयः [इतीयं वार्ता दूरादेवास्माभिः श्रुतेति पूर्व स्तुत्वा या लब्धा सा पूर्वसंस्तवदुष्टा । वसनोत्तरकालं च गच्छन्प्रशंसां करोति पुनरपि वसतिं लप्स्ये इति यत्प्रशंसति [मन्त्रेण, चूर्णेन, योगेन, मूलकर्मणा । सा पश्चात्संस्तव-] दोषदुष्टा । १३ । विद्यया मन्त्रादिना गृहिणं वशे स्थापयित्वा लब्धा वसतिः अभिहितदोषा। १२-१६ । एषणादोषान् एवं जानीहि । किम् इयं योग्या वसतिर्नेति शङ्किता।१। तदानीमेव सिक्ता लिप्ता वा म्रक्षितदोषः । २। सचित्तपृथिव्यप्तजोवायुवनस्पतिबीजानां त्रसानाम् उपरि स्थापितं पीठफलकादिकम् , अत्र मया शय्या कर्तव्या. या दीयते वसतिः सा निक्षिप्ता । ३ । सचित्तमृत्तिकापिधानमपाकृष्य या दीयते सा पिहिता । ४ । काष्ठादिकाकर्षणं कुर्वता पुरो यायिना उपदर्शिता वसतिः साहरणा।५ । मृतजातसूतकयुक्तगृहिजनेन व्याधितेन ग्रथिलेन दीयमाना वसतिर्दायक लाकर प्राप्त की गई वसतिका आजीवक दोषसे दूषित है । 'भगवन् , सबको आहार दान देनेसे और वसतिकाके दानसे क्या महान् पुण्यकी प्राप्ति नहीं होती ?' ऐसा श्रावकका प्रश्न सुनकर श्रावकके अनुकूल उत्तर देकर वसतिका प्राप्त करना वनीपक दोष है । आठ प्रकारकी चिकित्सा करके वसतिका प्राप्त करना चिकित्सा दोष है । क्रोध आदिसे प्राप्त की गई वसतिका क्रोधाधुत्पादित दोषसे दूषित है। 'आने जानेवाले मुनियोंको आपका ही घर आश्रय है' ऐसी स्तुति करके प्राप्त की गई वसतिका पूर्वस्तुति नामक दोषसे दुष्ट है । वसतिका छोड़ते समय 'आगे भी कभी स्थान मिल सके' इस हेतुसे गृहस्थकी स्तुति करना पश्चात् स्तुति नामक दोष है । विद्या मंत्र वगैरहके प्रयोगसे गृहस्थको वशमें करके वसतिका प्राप्त करना विद्यादि दोष है। भिन्न जातिकी कन्याके साथ सम्बन्ध मिलाकर वसतिका प्राप्त करना अथवा विरक्तोंको अनुरक्त करके उनसे वसतिका प्राप्त करना मूलकर्म दोष है । इस प्रकार ये सोलह उत्पादन दोष हैं । आगे दस एषणा दोष कहते हैं । यह वसतिका योग्य है अथवा नहीं ऐसी शंका जिसमें हो वह वसतिका शंकित दोषसे दुष्ट है। उसी समय लीपी पोती गई या धोई गई वसतिका म्रक्षित दोषसे दूषित है । सचित्त पृथिवी, जल, अग्नि, वनस्पति वगैरह अथवा बस जीवोंके ऊपर आसन वगैरह रखकर यहाँ आप विश्राम करें' ऐसा कह कर दी गई वसतिका निक्षिप्त दोषसे दूषित है। सचित मिट्टी वगैरहके आच्छादनको हटाकर दी गई वसतिका पिहित दोषसे दूषित है । लकड़ी वगैरहको घसीट कर ले जाते हुए पुरुषके द्वारा बतलाई गई वसतिका साधारण दोषसे दुष्ट है । मरणके अशौच या जन्मके अशौचसे युक्त गृहस्थके द्वारा अथवा रोगी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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