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१०. लोकानुप्रेक्षा जदि ण हवदि सा सत्ती सहाव-भूदा हि सव्व-दव्वाणं ।
'एक्केक्कास-पएसे कह ता सव्वाणि वटुंति ॥ २१५ ॥ [छाया-यदि न भवति सा शक्तिः खभावभूता हि सर्वव्याणाम् । एकस्मिन् आकाशप्रदेशे कथं तत् सर्वाणि वर्तन्ते ॥] यदि नन्वहो सर्वद्रव्याणां, हीति स्फुटं निश्चयतो वा, सा अवगाहनशक्तिः अवकाशदानसमर्थता खभावभूता खाभाविकी चेत् तो तर्हि सर्वाणि द्रव्याणि एकस्मिन् एकस्मिन् आकाशप्रदेशे कथं वर्तन्ते सन्ति । पुनरपि यथा जलपूर्णे घटे लवणं माति, अन्यच्च लोहसूच्यादिकं माति, तथा एकस्मिन्नाकाशप्रदेशे सर्वद्रव्यकदम्बं माति । स च कियान्मात्रः प्रदेशः इत्युक्ते, आगमे प्रोक्तं च । “जेत्ती वि खेत्तमित्तं अणुणा रुद्धं खु गयणदव्वं च तं च पदेसं भणियं अवरावरकारणं जस्स॥" यस्य परमाणोः परापरकारणं गगनद्रव्यं यावत् क्षेत्रमात्रं परमाणुना व्याप्तं स्फुटं स प्रदेशो भणित इति ॥२१५॥ अथ कालद्रव्यं लक्षयति
सव्वाणं दव्याणं परिणाम जो करेदि सो कालो।
एकेकास-पएसे सो वट्टदि एकको चेव ॥ २१६ ॥ [छाया-सर्वेषां द्रव्याणां परिणामं यः करोति स कालः । एकैकाकाशप्रदेशे स वर्तते एकैकः एव ॥] स जगत्प्रसिद्धः कालः निश्चयकालः कथ्यते । स कः । यः सर्वेषां द्रव्याणां जीवपुद्गलादीनां परिणामे पर्याय नवजीर्णतादिलक्षणम् उत्पादव्ययध्रौव्यलक्षणं च । जीवानां स्वभावपर्याय विभावपर्याय क्रोधमानमायालोभरागद्वेषादिक नरनारकतिर्यग्देवादिरूपं च, पुद्गलानां खभावपर्याय रूपरसगन्धादिपर्याय विभावपर्यायं घणुकत्र्यणुकादिस्कन्धपर्यन्तपर्याय करेदि कारयति उत्पादयतीत्यर्थः । स च निव्वयकालः । एकैकाकाशप्रदेशे एकस्मिन् एकस्मिन्नाकाशप्रदेशे कालाणुः वर्तते एव रनविरोध नहीं आता ॥ २१४ ॥ अर्थ-यदि सब द्रव्योंमें स्वभावभूत अवगाहन शक्ति न होती तो एक आकाशके प्रदेशमें सब द्रव्य कैसे रहते ॥ भावार्थ-सब द्रव्योंमें अवगाहनशक्ति खभावसे ही पाई जाती है । यदि अवगाहनशक्ति न होती तो आकाशके प्रत्येक प्रदेशमें सब द्रव्य नहीं पाये जाते । किन्तु जैसे जलसे भरे हुए घड़ेमें नमक समा जाता है, सूईयां समा जाती हैं, वैसे ही आकाशके एक प्रदेशमें सब द्रव्य रहते हैं । आकाशके जितने भागको पुद्गलका एक परमाणु रोकता है उसे प्रदेश कहते हैं। उस प्रदेशमें धर्म,अधर्म, काल, आदि सभी द्रव्य पाये जाते हैं । इससे प्रतीत होता है कि समी द्रव्योंमें खाभाविकी अवगाहन शक्ति है । शङ्का-यदि सभी द्रव्योंमें खाभाविक अवगाहन शक्ति है तो अवकाश देना आकाशका असाधारण गुण नहीं हुआ; क्यों कि असाधारण गुण उसे कहते हैं जो दूसरोंमें न पाया जाये ? समाधान-यह आपत्ति उचित नहीं है । सब पदार्थोंको अवकाश देना आकाशका असाधारण लक्षण है, क्योंकि अन्यद्रव्य सब पदाथोंको अवकाश देनेमें असमर्थ हैं । शक्का अलोकाकाश तो किसी मी द्रव्यको अवकाश नहीं देता अतः इसमें अवकाशदानकी शक्ति नहीं माननी चाहिये । समाधान अलोकाकाशमें आकाशके सिवाय अन्य कोई द्रव्य नहीं पाया जाता । किन्तु इससे वह अपने खभावको नहीं छोड़ देता ॥ २१५ ॥ अब काल द्रव्यका लक्षण कहते हैं। अर्थजो सब द्रव्योंके परिणामका कर्ता है वह कालद्रव्य है । वह कालद्रव्य एक एक आकाशके प्रदेशपर एक एक ही रहता है । भावार्थ-जीव पुद्गल आदि सब द्रव्योंमें नयापन और पुरानापनरूप अथवा उत्पाद व्यय और ध्रौव्यरूप परिणाम यानी पर्याय प्रतिसमय हुआ करती है। वह पर्याय दो प्रकारकी
१ म एकेकास, ग एफेकास। २ म किहं। ३ म स ग पक्किो ।
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