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१९४ खामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा
[गा० २७१तथाहि । अनादिनित्यपर्यायार्थिकः यथा पुद्गलपर्यायो नित्यः मेर्वादिः । १ । सादिनित्यपर्यायार्थिकः यथा सिद्धजीवपर्यायो हि सादिनित्यः । २। सत्तागौणत्वेन उत्पादव्यय ग्राहकखभावनित्य शुद्धपर्यायार्थिकः। यथा समयं समयं प्रति पर्यायाः विनाशिनः । ३ । सत्तासापेक्षखभावनित्यशुद्धपर्यायार्थिकः, यथा एकस्मिन् समये त्रयात्मकः पर्यायः । ४ । कर्मोपाधिनिरपेक्षवभावनित्यशुद्धपर्यायार्थिकः, यथा सिद्धपर्यायसदृशाः शुद्धाः संसारिणां पर्यायाः । ५। कर्मोपाधिसापेक्षखभावानित्यअशुद्धपर्यायार्थिकः, यथा संसारिणाम् उत्पत्तिमरणे स्तः । ६ । इति पर्यायार्थिकस्य षड्मेदाः ॥ २७० ॥ अथेदानी नयानां विशेषलक्षणं कार्तिकेयस्खामी कथयन् सभेदं नैगमनयं व्याचष्टे
जो साहेदि अदीदं वियप्प-रूवं भविस्समद्रं च ।
संपडि-कालाविटुं सो हु'णओ 'णेगमो णेओ ॥ २७१ ॥ [छाया-यः कथयति अतीतं विकल्परूपं भविष्यमर्थं च । संप्रति कालाविष्टं स खलु नयः नैगमः ज्ञेयः ॥] हस्फुट,स नेगमो.नयः ज्ञेयः ज्ञातव्यः। नेकं गच्छतीति निगमो विकल्पः बहभेदः। निगमे भवो नैगमः यः नैगमनयः । अतीतं भूतम् अतीतार्थ विकल्परूपं वर्तमानारोपणम् अर्थ पदार्थ वस्तु साधयति स भूतनगमः । यथाद्य दीपोत्सवदिने वर्धमानखामी मोक्षं गतः। १। च पुनः भविष्यन्तम् अर्थम् अतीतवत् कथनं भाविनि भूतवत्कथनं भाविनैगमः, यथा अर्हन सिद्ध एव । २। संप्रतिकालाविष्टं वस्तु इदानीं वर्तमानकालाविष्टं पदार्थ साधयति स वर्तमाननैगमः। अथवा कर्तुमारब्धम् ईषन्निष्पन्नम् अनिष्पन्नं वा वस्तु निष्पन्नवत् कथ्यते यत्र स वर्तमाननैगमः, यथा ओदनं पच्यते । इति
व्यय और ध्रौव्य लक्षणरूप पर्यायोंको जो हेतुपूर्वक ग्रहण करता है वह पर्यायार्थिक नय है अर्थात् पर्यायको विषय करनेवाला नय है । इस नयके छ: भेद हैं-अनादिनित्य पर्यायार्थिक नय, जैसे मेरु वगैरह पुद्गलकी नित्य पर्याय है । अर्थात् मेरु पुद्गलकी पर्याय होते हुए भी अनादि कालसे अनन्तकाल रहता है १ । सादिनित्य पर्यायार्थिक नय, जैसे सिद्ध पर्याय सादि होते हुए भी नित्य है २ । सत्ताको गौण करके उत्पाद व्ययको ग्रहण करनेवाला नित्यशुद्ध पर्यायार्थिक, जैसे पर्याय प्रतिसमय विनाशीक है ३। सत्ता सापेक्ष नित्यशुद्ध पर्यायार्थिक, जैसे पर्याय एक समयमें उत्पाद व्यय ध्रौव्यात्मक है ४ । कर्मकी उपाधिसे निरपेक्ष नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक, जैसे संसारी जीवोंकी पर्याय सिद्ध पर्यायके समान शुद्ध है ५। कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक, जैसे संसारी जीवोंका जन्म मरण होता है ६ ॥२७० ।। आगे नयके भेदोंका लक्षण कहते हुए कार्तिकेय खामी नैगमनयको कहते हैं । अर्थ-जो नय अतीत, भविष्यत् और वर्तमानको विकल्परूपसे साधता है वह नैगमनय है ॥ भावार्थ-निगम' का अर्थ हैसंकल्प विकल्प । उससे होनेवाला नैगमनय है । यह नैगमनय द्रव्यार्थिक नयका भेद है। अतः इसका विषय द्रव्य है । और द्रव्य तीनों कालोंकी पर्यायोंमें अनुस्यूत रहता है । अतः जो नय द्रव्यकी अतीत कालकी पर्यायमें भी वर्तमानकी तरह संकल्प करता है, आगामी पर्यायमें भी वर्तमानकी तरह संकल्प करता है और वर्तमानकी अनिष्पन्न अथवा किंचित् निष्पन्न पर्यायमें भी निष्पन्न रूप संकल्प करता है, उस ज्ञानको और वचनको नैगम नय कहते हैं। जो अतीत पर्यायमें वर्तमानका संकल्प करता है वह भूत नैगम नय हैं । जैसे आज दीपावलीके दिन महावीर स्वामी मोक्ष गये । जो भावि पर्यायमें भूतका संकल्प करता है वह भावि नैगमनय है, जैसे अर्हन्त भगवान् सिद्ध ही हैं । जो वस्तु बनाने का संकल्प किया है वह कुछ बनी हो अथवा नहीं बनी हो, उसको बनी हुईकी तरह कहना अथवा
१लम स ग णयो णेगमोणेयो। २ ब णइगमो (१)।
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