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३. संसारानुप्रेक्षा धनदेवः पिता, तस्यापि वेश्या माता, तेन मे पितामही सा।२। धनदेवस्य तवापि सा मातृत्वात् ममापि माता।३। मतभार्यात्वात् सा मे सपत्नी। ४ । धनदेवो मत्सपत्नीपुत्रत्वात् ममापि पुत्रस्तद्भार्यात्वात् मदीया सा वेश्या वधूः। ५। अहं धनदेवभार्या तस्य सा माता तेन मे श्वश्रूः।६। एतच्छ्रत्वा वेश्याधनदेवकमलावरुणादयः ज्ञातवृतान्ताः जातस्मरीभूताः प्रतिबुद्धाः तपो गृहीत्वा च खर्ग गता इति धनदेवादिदृष्टान्तकथा ॥६४-६५॥ अथ पञ्चविधसंसारस्य नामानि निर्दिशति
... संसारो पंच-विहो दव्वे खेत्ते तहेव काले य।।
भव-भमणो य चउत्थो पंचमओ भाव-संसारो ॥६६॥ [छाया-संसारः पञ्चविधः द्रव्ये क्षेत्रे तथैव काले च । भवभ्रमणश्च चतुर्थः पञ्चमकः भावसंसारः ॥] संसरणं संसारः परिवर्तनं भ्रमणमिति यावत् पञ्चविधः पञ्चप्रकारः । प्रथमो द्रव्यसंसारः १, द्वितीयः क्षेत्रसंसारः २, तथैव तृतीयः कालसंसारः ३, च पुनः चतुर्थो भवभ्रमणः भवसंसारः ४, पञ्चमो भावसंसारः ५॥६६॥ अथ प्रथमद्रव्यपरिवर्तनस्वरूपं निरूपयति
बंधदि मुंचेदि जीवो पडिसमयं कम्म-पुग्गला विविहा ।
णोकम्म-पुग्गला वि य मिच्छत्त-कसाय-संजुत्तो ॥ ६७॥' पुत्र हो । २ मेरे भाई धनदेवके पुत्र होनेसे तुम मेरे भतीजे हो । ३ तुम्हारी और मेरी माता एक ही है, अतः तुम मेरे भाई हो । ४ धनदेवके-छोटे भाई होनेसे तुम मेरे देवर हो। ५ धनदेव मेरी माता वसन्ततिलकाका पति है, इसलिये धनदेव मेरा पिता है। उसके भाई होनेसे तुम मेरे काका हो। ६ मैं वेश्या वसन्ततिलकाकी सौत हूँ। अतः धनदेव मेरा पुत्र है । तुम उसके भी पुत्र हो, अतः तुम मेरे पौत्र हो। यह छह नाते बच्चेके साथ हुए। आगे-१ वसन्ततिलकाका पति होनेसे धनदेव मेरा पिता है । २ तुम मेरे काका हो और धनदेव तुम्हारा भी पिता है, अतः वह मेरा दादा है । ३ तथा वह मेरा पति भी है । ४ उसकी और मेरी माता एक ही है; अतः धनदेव मेरा भाई है । ५ मैं वेश्या वसन्ततिलकाकी सौत हूँ और उस वेश्याका वह पुत्र है; अतः मेरा भी पुत्र है । ६ वेश्या मेरी सास है, मैं उसकी पुत्रवधू हूँ और धनदेव वेश्याका पति है; अतः वह मेरा श्वशुर है । ये छह नाते धनदेवके साथ हुए । आगे-१ मेरे भाई धनदेवकी पत्नी होनेसे वेश्या मेरी भावज है । २ तेरे मेरे दोनोंके धनदेव पिता हैं और वेश्या उनकी माता है; अतः वह मेरी दादी है । ३ धनदेवकी और तेरी भी माता होनेसे वह मेरी भी माता है । ४ मेरे पति धनदेवकी भार्या होनेसे वह मेरी सौत है । ५ धनदेव मेरी सौतका पुत्र होनेसे मेरा भी पुत्र कहलाया। उसकी पत्नी होनेसे वह वेश्या मेरी पुत्रवधू है। ६ मैं धनदेवकी स्त्री हूँ और वह उसकी माता है; अतः मेरी सास है । इन अट्ठारह नातोंको सुनकर वेश्या, धनदेव आदिको भी सब बातें ज्ञात होजानेसे जाति. स्मरण हो आया। सभीने जिनदीक्षा लेली और मरकर वर्ग चले गये । इस प्रकार एक ही भवमें अट्ठारह नाते तक होजाते हैं, तो दूसरे भवकी तो कथा ही क्या है ? ॥.६४-६५ ॥ अब पाँच प्रकारके संसारके नाम बतलाते हैं। अर्थ-संसार पाँच प्रकारका होता है-द्रव्यसंसार, क्षेत्रसंसार, कालसंसार, भवसंसार और भावसंसार ॥ भावार्थ-परिभ्रमणका नाम संसार है, और द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावके निमित्तसे वह पाँच प्रकारका होता है ।। ६६ ॥ पहले द्रव्य परिवर्तन या द्रव्यसंसारका
१ बम भवणो। २ ब मुच्चदि। ३ गाथान्ते ब म 'दचे।
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