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स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा
[गा०९१सत्तम-णारयहितो असंख-गुणिदो हवंति णेरइया ।
जाव य पढम णरयं बहु-दुक्खा होति' हेडिट्ठा ॥ १५९ ॥ [छाया-सप्तमनारकेभ्यः असंख्यगुणिताः भवन्ति नैरयिकाः । यावत् च प्रथमं नरके बहुदुःखाः भवन्ति अधोऽधः ॥] सप्तमनरकात् तमस्तमःप्रभामाधवीनाम्नः सकाशात् उपर्युपरि नारकाः यावत् प्रथमनरकं रमप्रभाधर्मानामप्रथमनरकपर्यन्तं असंख्यातगुणिता नारकाः भवन्ति । सप्तमे माधवीनानि नरके नारकाः सर्वस्तोकाः. श्रेण्यसंख्येयभागप्रमिताः निजद्वितीयवर्गमूलभक्तजगच्छ्रेणिमात्रा नारकाः भवन्ति । षष्ठे मघवीनाम्नि नरके सप्तमपथिवीनारकेभ्यः षष्ठतमःप्रभापृथिवीनारका असंख्यातगुणाः,निजतृतीयवगंमूलभाजितजगच्छेणिमात्रा भवन्तिभयक्ष बनारकेभ्यश्च पञ्चमपृथिवीनारका असंख्यातगुणाः, पञ्चमेऽरिष्टानामनि नरके निजषष्ठवर्गमलभक्तजगच्छेणिमात्रा नारळा.
- यच पञ्चमपृथिवीनारकेभ्यश्च, चतुर्थपृथिवीनारकाः असंख्यातगुणाः सन्तः अजनानानि चतुर्थनरके अष्टमनिजवर्गमूलविभक्तजगच्छ्रेणिमात्रा नारका भवन्ति । तेभ्यश्चतुर्थनारकेभ्यस्तृतीयपृथिवीनारकाः असंख्यातगुणाः सन्तः वालुकाप्रभामेघानामनि तृतीयनरके दशमनिजवर्गमूलापहृतजगच्छेणिमात्रा नारका भवन्ति । तेभ्यश्च तृतीयपृथिवीनारकेभ्यो द्वितीयनरके नारकाः असंख्यातमुणाः, द्वादशनिजवर्गमूलभकजगरछेगिमात्राः वंशामानि द्वितीये ५. नौ अनुदिशोंका ९, तीन तीन उपरिम, मध्य और अधोवेयकका संकेत ३ का चिद्ध है। तथा पहले दूसरे. सातवें आठवें खर्गयुगलमें दो दो इन्द्रसम्बन्धी देवोंका प्रमाण है। अतः वहाँ हो एक १३१ रखे हैं । और तीसरे, चौथे, पाँचवें और छठे युगलमें एक एक ही इन्द्र होता है अतः वहाँ एक एक और एक बिन्दी ११० इस तरह रखी है ॥ १५८॥ अर्थ-सातवें नरकसे लेकर ऊपर पहले नरक तक नारकियोंकी संख्या असंख्यात गुणी असंख्यात गुणी है । तथा प्रथम नरकसे लेकर नीचे नीचे बहुत दुःख है ॥ भावार्थ-महातमःप्रभा नामक पृथ्वीमें स्थित माधवी नामके सातवें नरकसे लेकर ऊपर ऊपर रत्नप्रभानामक पृथ्वीमें स्थित धर्मा नामके प्रथम नरकतक नारकियोंकी संख्या असंख्यातगुणी है । अर्थात् सातवें माधवी नामके नरकमें सबसे कम नारकी है। उनका प्रमाण जगतश्रेणिके दूसरे वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणि प्रमाण है । छठे मघवी नामके नरकमें सातवें नरकके नारकियोंसे असंख्यात गुने नारकी हैं । उनका प्रमाण जगतश्रेणिके तीसरे वर्गमूल से भाजित जमतश्रेणि प्रमाण है। छठे नरकके नारकियोंसे पांचवे नरकके नारकियोंका प्रमाण असंख्यातना है जो जगतश्रेणिके छठे वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणि प्रमाण है । उन पांचवें नरकके नारकियोंसे चौथे नरक के नारकियोंका प्रमाण असंख्यातगुणा है जो जगतश्रेणिके आठवें वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणिप्रमाण है । चौथे नरकसे तीसरे नरकके नारकियोंका प्रमाण असंख्यातगुणा है । अत: वालुकाप्रभाभूमिमें स्थित मेघा नामके तीसरे नरकमें जगतश्रेणिके दसवें वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणिप्रमाण नारकी हैं। तीसरे नरकके नारकियोंसे दूसरे नरकमें नारकी असंख्यातगुने हैं । अतः वंशा नामके दूसरे नरकमें जगतश्रेणिके बारहवें वर्गमूलसे भाजित जगतश्रेणि प्रमाण नारकी हैं । दूसरे नरकके नारकियोंसे असं ख्यातगुने प्रथम नरकके नारकी हैं । सो समस्त नरकोंके नारकियोंका प्रमाण धनांगुलके दूसरे वर्गमूलसे जगतश्रेणिको गुणा करनेसे जो प्रमाण आवे, उतना है । इस ऊपर कहे छ: नरकोंके नारकियों के प्रमाणको जोड़कर इस प्रमाणमें से घटा देने पर जो शेष रहे उतना प्रथम नरकके नारकियोंका प्रमाण है । तथा नीचे नीचे नारकी उत्तरोत्तर अधिक २ दुखी हैं । अर्थात् प्रथम नरकके दुःखसे दूसरे
१.गणिवा । २ स ग हवंति। ३ बम हिहिट्ठा ।
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