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३0 कर्म-विज्ञान : भाग-२ : उपयोगिता, महत्ता और विशेषता (४) है और यह भी बताता है कि ये दृश्यमान अवस्थाएँ आत्मा का स्वभाव नहीं, ये कर्मोपाधिक हैं।' इस प्रकार कर्मविज्ञान दृश्यमान जगत् की समग्र अवस्थाओं और उनके कारणों को बताकर फिर आत्मा की सभी स्वाभाविक अवस्थाओं का गुणस्थान क्रम से निरूपण करता है। कर्मविज्ञान : अध्यात्मविज्ञान को प्रकट करने की कुंजी
डिब्बे के अन्दर रखे हुए रत्नों की प्राप्ति तभी हो सकती है, जब डिब्बे के बाह्य रूप को तथा उसे खोलने की कुंजी, विधि आदि की स्थिति को समझा जाए और फिर . उसे खोला जाए। इसी प्रकार आत्मा में निहित ज्ञान, दर्शन, आनन्द और शक्तिरूपी रत्न निधि प्राप्ति तभी हो सकती है, जब आत्मा के तन-मन-वचन योगों से जनित कर्मकृत बाह्य रूपों, औपाधिक अवस्थाओं, आवरणों आदि को समझा जाए, फिर आभ्यन्तर ज्ञान-दर्शन-चारित्र-तपरूपी कुंजी से मोह-कषायादिरूपी तालों को खोला जाए, आत्मभावरमण साधना से आवरणों को हटाया जाए और अन्तरात्मा में निहित सुषुप्त निर्मल ज्ञान, दर्शन, आनन्द और शक्ति को जगाया जाए, प्रकट किया जाए। कहना होगा कि जैन कर्मविज्ञान अध्यात्मविज्ञान को प्रकट करने की सही कुंजी है। कर्मविज्ञान का सर्वक्षेत्रीय विज्ञानों के साथ समन्वय और महत्व
इस - सन्दर्भ में हमने द्वितीय खण्ड के “कर्मशास्त्रों द्वारा कर्मवाद का अध्यात्ममूलक सर्वक्षेत्रीय विकास" नामक निबन्ध में भलीभांति स्पष्ट कर दिया है कि कर्मविज्ञान समस्त प्राणिजगत् की अथ से इति तक की अवस्थाओं का परिज्ञान कराकर उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकास की प्रेरणा देता है।२ । कर्मविज्ञान : आत्मशक्तियों के प्रकटीकरण में प्रेरक ____ अतः मनुष्य यदि जिज्ञासु और मुमुक्षु बनकर कर्मविज्ञान का अध्ययन-मननचिन्तन करे तो उसे अपनी आत्मशक्तियों का पूर्ण भान तथा उन्हें प्रकट करने का मनोरथ जाग्रत हुए बिना नहीं रहता। फिर आत्मा में यह विवेक जाग उठता है कि यह सारा कर्मजाल मेरी अपनी अज्ञान-मोह-जनित भूलों तथा विविध प्रमाद के कारण फैला हुआ है। यदि मैं अपना आत्मबल और साहस बटोर कर कर्मों के साथ जूझ पडूं तो इनके छिन्न-भिन्न होते देर नहीं लगेगी। इस प्रकार कर्मविज्ञान पर-पदार्थों के प्रति अहंत्व-ममत्व को तथा आत्मा और शरीर की अभिन्नता के भ्रम को हटाकर भेद-विज्ञान की शिक्षा देता है, ताकि अन्तर्दृष्टि खुले, अध्यात्म का ज्ञान हो और परमात्मतत्त्व के दर्शन हों।
१. उत्तराध्ययन नियुक्ति (५२) में कहा है
"जावइया ओदइया, सव्वो सो बाहिरो जोगो। २. देखें-कर्मविज्ञान के द्वितीय खण्ड में कर्मशास्त्रों द्वारा कर्मवाद का अध्यात्ममूलक सर्वक्षेत्रीय
विकास निबन्ध पृ.
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