Book Title: Karananuyoga Part 3 Author(s): Pannalal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain MahasabhaPage 18
________________ एवं १५७५ धनुष मोटाई वाले तीन वातवलय हैं। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में त्रस जीव नहीं हैं। इसका कुल परिमाण (३१६६४६६६३)धनुष + ६६,००० धनुष + ६४,००० धनुष + ४,००० धनुष + २,००० धनुष + १५.७५ धनुष) = ३२१६२२४१३ धनुष) प्राप्त होता है। १२. प्रश्न : त्रस नाली के बाहर त्रस जीव कौन सी अवस्था में किस तरह पाये जाते हैं ? उत्तर : उपपाद, मारणान्तिक समुद्घात एवं लोकपूरण समुद्घात की अवस्था में त्रस जीव त्रस नाली के बाहर भी पाये जाते हैं।' जैसे त्रस नाली के बाहर रहने वाला कोई स्थावर जीव मरण करके त्रस जीव में उत्पन्न होने के लिये त्रस नाली की ओर आ रहा है। उस समय उस जीव के विग्रहगति में ही बस नाम कर्म का उदय आ जाने से जितने समय तक वह त्रसनाली के बाहर विग्रहगति में रहता है, उतने समय तक उपपाद की अपेक्षा त्रस जीव का सनाली के बाहर सद्भाव पाया जाता है। त्रसनाली के भीतर रहने वाला कोई त्रस जीव, वसनाली के उबयाद.. मारणंतिय-परिणद-तसमुज्झिाऊण सेसतसा । तसणालि बाहिरम्मि य पत्थित्ति जिणेहि णिदिदटें ।। (जीवकाण्ड गाथा ६५)Page Navigation
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