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करने पर जो प्राप्त हो वह व्यन्तर देवों का निवासक्षेत्र है, यथा १ राजू x १ राजू - १,६६,००० योजन (पंक भाग से मेरु पर्वत की ऊँचाई पर्यन्त का क्षेत्र) प्रमाण व्यन्तर देवों का निवासक्षेत्र है। इस निवासक्षेत्र में व्यन्तर देवों के तीन प्रकार के पुर होते हैं। ६६. प्रश्न : व्यन्तर देवों के निवासस्थान के कितने भेद हैं ?
उन भेदों के लक्षण बतलाइये ? उत्तर : व्यन्तर देवों के निवासस्थान के तीन भेद हैं। (9) भवन, (२) भवनपुर, (३) आवास।
जो स्थान पृथ्वी से नीचे अर्थात् रत्नप्रभा पृथ्वी में हैं, उन्हें भवन कहते हैं। जो निवासस्थान मध्यलोक की समभूमि पर हैं एवं द्वीप-समुद्रों के ऊपर हैं, उन्हें भवनपुर कहते हैं। जो स्थान पृथ्वी से ऊँचे हैं और द्रह (तालाब) एवं पर्वतादिकों के ऊपर हैं उन्हें आवास कहते हैं। कोई व्यन्तरदेव मात्र भवनों में रहते हैं, कोई भवन और भवनपुर दोनों में रहते हैं और कोई भवन, भवनपुर तथा आवास तीनों में रहते हैं। ७०. प्रश्न : व्यन्तरदेव कहाँ निवास करते हैं ? उत्तर : रत्नप्रभा पृथ्वी के ख़र भाग में जम्बूद्वीप से तिरछे दक्षिण एवं उत्तर दिशा में असंख्यात द्वीप-समुद्रों के बाद क्रमशः दक्षिणेन्द्र, उत्तरेन्द्र एवं उनके परिवार वाले किन्नर, किम्पुरुष, महोरग,
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