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ईषत्प्राग्भार नामक अष्टम पृथ्वी है। इसकी चौड़ाई (पूर्व-पश्चिम) एक राजू, लम्बाई (उत्तर-दक्षिण) सात राजू एवं मोटाई आठ योजन प्रमाण है। १११. प्रश्न : सिद्धक्षेत्र कहाँ है ? उत्तर : आठवीं पृथ्वी के बहुमध्य भाग में ऊर्ध्वमुख छत्र के आकार वाला और मनुष्यक्षेत्र प्रमाण अर्थात् ४५,००,००० योजन विस्तृत ईषत्प्राग्मार नामक सिद्धक्षेत्र है। इसका बाहल्य मध्य में ८ योजन है और अन्यत्र क्रम-क्रम से हीन होता हुआ अन्त में (दोनों छोरों पर एक-एक अंगुल प्रमाण रह जाता है। इस सिद्धक्षेत्र के उपरिम तनुवातवलय में अर्थात् लोक के अंतिम ५२५ धनुष प्रमाण क्षेत्र में अनन्तानन्त सिद्ध परमेष्टियों का निवास है। ११२. प्रश्न : ऊर्ध्वलोक में कितने अकृत्रिम चैत्यालय हैं ? उत्तर : ऊर्ध्वलोक में सम्पूर्ण विमानों की संख्या ८४,६७,०२३ है। प्रत्येक विमान में एक-एक जिनमन्दिर है अतः ऊर्ध्वलोक के सम्पूर्ण जिनमन्दिरों का प्रमाण भी ८४,६७,०२३ है। ११३. प्रश्न : स्वर्ग के विमानों की रचना किस प्रकार है ? उत्तर : स्वर्ग के विमान इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक के भेद से तीन प्रकार के हैं। इन्द्रक विमान मध्य में रहता है, श्रेणीबद्ध
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