Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 124
________________ मनुष्यों के मुख हाथी, गोमुख, मेढ़ा के मुख सदृश होते हैं। यहाँ जन्मादिक की सर्व प्रवृत्ति जघन्य भोगभूमि सदृश है। एक पल्य प्रमाण आयु होती है। वे अत्यन्त गीठी मिट्टी एवं कल्पवृक्षों द्वारा प्रदत्त फलों का भोजन करते हैं। २०७. प्रश्न : भोगभूमि में उत्पारिता के कला कारण हैं ? उत्तर : जो जीव जिनलिंग धारण कर मावाचारी करते हैं, ज्योतिष एवं मन्त्रादि विद्याओं द्वारा आजीविका करतो हैं, धन के इच्छुक हैं, तीन गारव एवं चार संज्ञाओं से युक्त हैं, गुहस्थों के विवाह आदि कराते हैं, सम्यग्दर्शन के विराधक है, अपने दोषों की आलोचना नहीं करते हैं, दूसरों को दोष लगाते हैं, जो मिथ्यादृष्टि पंचाग्नि तप तपते हैं, मौन छोड़कर आहार करते हैं तथा जो दुर्भावना, अपवित्रता, सूतक आदि से एवं पुष्पवती स्त्री के स्पर्श से युक्त तथा "जाइसंकरादोहिं" जातिसंकर आदि दोषों से सहित होते हुए भी दान देते हैं और जो कुपात्रों को दान देते हैं, वे जीव मरकर कुमनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। ___जो दिगम्बर साधुओं की निन्दा करते हैं, गुरु के साथ स्वाध याय एवं वन्दनाकर्म नहीं करते हैं, गुरु मुनिसंघ छोड़कर एकाकी रहते हैं, वे कुमनुष्यों में उत्पन्न होते हैं। (११५०

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