Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 122
________________ परिग्रह से रहित यातयों को भक्ति से आहारदान, अभयदान, औषधदान एवं ज्ञानदान देने में तत्पर रहते हैं, वे भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। पूर्व में मनुष्य आयु बौंथकर पश्चात् तीर्थकर के पादमूल में क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त करने वाले कितने ही सम्यग्दृष्टि पुरुष भी भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। दानो की अनुमोदना करने से तिर्यंच भी भोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। २०३. प्रश्न : मोगभूमिज जीवों की गति क्या है ? अर्थात् मरण के बाद वे कहाँ उत्पन्न होते हैं ? उत्तर : भोगभूमिज मिथ्यादृष्टि मनुष्य एवं तिर्यंच भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में तथा सम्यग्दृष्टि मनुष्य एवं तिथंच सौधर्म युगल में उत्पन्न होते हैं। २०४. प्रश्न : भोगभूमिज तिर्यचों में क्या विशेषता है ? उत्तर : भोगभूमिज तिर्यच युगल उत्पन्न होते हैं। वे उत्तम वर्ण वाले, मन्दकषायी और सरल परिणामी होते हैं और अपनी-अपनी योग्यतानुसार फल, कन्द, तृण और अंकुरादि के भोग भोगते हैं। वहाँ व्याघ्रादिक भूमिचर और काक आदि नभचर भी मांसाहार के (११३)

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