Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 140
________________ और संक्रमणकरण छठे गुणस्थान तक, उपशामना, निधत्ति और निकाचनाकरण आठवें गुणस्थान के अन्त तक तथा उदय और सत्त्व चौदहवें गुणस्थान तक होते हैं। असाता वेदनीय के बन्धनकरण, उत्कर्षणकरण और उदीरणाकरण छठे गुणस्थान तक, संक्रमणकरण दसवें गुणस्थान तक, अपकर्षणकरण तेरहवें गुणस्थान तक, उपशामना, निधत्ति और निकाचनाकरण आठवें गुणस्थान तक तथा उदय और सत्त्व चौदहवें गुणस्थान तक होते हैं। २३५. प्रश्न : मोहनीय कर्म में करणों की क्या व्यवस्था है ? उत्तर : मोहनीय कर्म के अपवर्तनाकरण और उदीरणाकरण सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थान में समयाधिक एक आवलि प्रमाण काल शेष रहने तक एवं उदय उसके अन्तिम समय तक होता है। बन्धन, उत्कर्षण और संक्रमणकरण अनिवृत्ति-करण के विवक्षित स्थान तक होते हैं। अप्रशस्त उपशामनाकरण, नित्ति और निकाचनाकरण अपूर्यकरण के अन्तिम समय तक होते हैं तथा सत्त्व उपशान्त मोह के अन्तिम समय तक होता है। २३६. प्रश्न : ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म के करणों की क्या व्यवस्था है ? उत्तर : ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म के (१३१)

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