Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 138
________________ पञ्चमाधिकार २३१. प्रश्न : करण किसे कहते हैं और उनकी संख्या कितनी उत्तर : ज्ञानावरणादि कर्मों की अवस्था विशेष को कारण कहते हैं। उनकी संख्या ८ है- (9) अप्रशस्त उपशामना (२) निधत्ति (३) निकाचना (४) बंधन (५) उदीरणा (६) अपकर्षण (७) उत्कर्षण और (८) संक्रमणकरण'। २३२. प्रश्न : किस कर्म के कौन-कौन करण होते हैं ? उत्तर : चारों आयुओं में संक्रमण करण के बिना नौ करण होते हैं। शेष सब कर्म-प्रकृतियों में दस करण होते हैं। २३२. प्रश्न : आयु कर्म में कौन करण किस गुण-स्थान तक होते हैं ? उत्तर : आयु कर्म में नरकायु के बन्धन-करण और उत्कर्षण-करण मिथ्यात्व गुणस्थान में ही होते हैं। संक्रमण करण को छोड़कर शेष १. कर्मकाण्ड गाथा, ४३६ से ४५० तक कहे हुये दस करणों में उदय और सस्थ को छोड़कर तथा उपशम के स्थान पर अप्रशस्त उपशामना करण नाम देने से आठ करण होते हैं। इनके लक्षण करणानुयोग दीपक भाग-२ के पृष्ठ ११२-११३ पर देखें। (१२६)

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