Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 141
________________ अपवर्तनाकरण तथा उदीरणाकरण बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान में समयाधिक आवलि मात्र काल शेष रहने तक होते हैं एवं उदय और सत्त्व इसी गुणस्थान के अन्तिम समय तक होते हैं। बन्धन, उत्कर्षण और संक्रमणकरण दशम गुणस्थान तक होते हैं। उपशामना, नित्ति और निकाचनाकरण अष्टम गुणस्थान के अन्तिम समय तक होते हैं। २३७. प्रश्न : नाम और गोत्र कर्म में करणों का क्या क्रम है ? उत्तर : नाम और गोत्र कर्म के बन्धन, उत्कर्षण और संक्रमण करण दशम गुणन तक, सदीरणा और भाकर्षण करण सयोग केवली गुणस्थान के अंतिम समय तक, उपशामना, नित्ति और निकाचना करण अष्टम गुणथान के अन्तिम समय तक तथा उदय और सत्त्व अयोग केवली गुणस्थान के अन्तिम समय तक होते हैं। २३८. प्रश्न : उपशामना के कितने भेद हैं ? उत्तर : उपशामना के दो भेद हैं। (9) सव्याघात उपशामना और (२) अव्याघात उपशामना। नपुंसक वेद आदि का अपशम करते समय यदि बीच में ही मरण हो जाता है तो उसे सव्याघात उपशामना कहते हैं। इसका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। (१३२)

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