Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 142
________________ बीच में होने वाले मरण से जो रहित है उसे अव्याघात उपशामना कहते हैं। इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। अप्रशस्त उपशामना और प्रशस्त उपशामना के भेद से भी उपशामना के दो भेद हैं। २३६. प्रश्न : उपशान्त मोह गुणस्थान में होने वाले प्रतिपात के कितने कारण हैं ? उत्तर : दो कारण हैं - (१) आयुक्षय और (२) उपशम काल की पूर्णता। इस गुणस्थान में आयुक्षय से होने वाले प्रतिपात में अर्थात् मरने के बाद यह मुनि देवपर्याय में नीचे चतुर्थ गुणस्थान में आ जाता है और उपशम काल के क्षय से होने वाले प्रतिपात के समय जीव क्रम से नीचे उतरता है। २४०. प्रश्न : अश्वकर्ण करण क्या है ? उत्तर : अश्वकर्ण करण के तीन नाम हैं - (१) अश्वकरण (२) आंदोल करण और (३) उद्वर्तन-अपवर्तन करण। जिस प्रकार घोड़े के कान मूल से लेकर दोनों ओर घटते जाते हैं उसी प्रकार संज्वलन क्रोध से लेकर अनुभाग स्पर्धकों की (१३३)

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