Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 120
________________ से दो प्रकार की है। भरत और ऐरावत क्षेत्रों में कालचक्र का परिवर्तन होता है, अत: वहाँ की भोग-भूमियाँ अस्थिर कहलाती हैं, जहाँ काल-चक्र का परिवर्तन नहीं होता है, अतः वहाँ की भोगभूमियाँ स्थिर होती हैं। १. उत्तम, २. मध्यम और ३. जघन्य के भेद से भोगभूमि तीन प्रकार की होती हैं। देवकुरु व उत्तरकुरु में (विदेह के अंश) उत्तम भोगभूमि है। उत्तम भोगभूमि में मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई ३. कोस की होती है, ३ पल्य की उत्कृष्ट आयु होती है और ३ दिन के बाद बदरी फल बराबर आहार होता है। हरि और रम्यक क्षेत्र में मध्यम भोगभूमि है। यहाँ मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई २ कोस की होती है, २ पल्य की उत्कृष्ट आयु होती है और २ दिन के बाद बहेड़ा फल बराबर आहार होता है। हैमवत, हैरण्यवत् क्षेत्र में एवं मध्य के असंख्यात् द्वीप-समुद्रों में जघन्य भोगभूमि है। यहाँ मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई १ कोस की होती है। १ पल्य की उत्कृष्ट आयु होती है और १ दिन के बाद आँवले के फल बराबर आहार होता भरत और ऐरावत क्षेत्र में कालचक्र का परिवर्तन होता रहता है। सुषमा-सुषमा काल में उत्तम भोगभूमि, सुषमा काल में मध्यम भोगभूमि और सुषमा-दुःषमा काल में जघन्य भोगभूमि होती है। (११५)

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