Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 127
________________ शिलाओं पर होता है। ये सब शिलाएँ अर्धचन्द्राकार हैं। इन शिलाओं पर तीर्थकर , सौधर्मेंद्र और ईशानेन्द्र संबंधी तीन-तीन सिंहासन हैं। जिनेन्द्र सिंहासन एवं दोनों भद्रासनों का मुख पूर्व दिशा की ओर है। पाण्डुक वन के मध्य में मेरु की वैडूर्य रत्नों से रचित ४० योजन की चूलिका है सुमेरु पर्वत मूल में १००० योजन प्रमाण वज्रमय, मध्य में ६१,००० योजन प्रमाण उत्तम रत्नमय और ऊपर ३८,००० योजन प्रमाण स्वर्णमय है। ___ अन्य चारों मेरु पर्वतों के मूल भाग में भद्रशाल वन हैं, उन वनों से ५०० योजन ऊपर नन्दनवन. ५५,५०० योजन ऊपर सौमनसवन एवं २५,००० योजन ऊपर पाण्डुक वन हैं। इन मेरुओं के भी चारों वनों में चार-चार अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं। इस प्रकार पाँच मेरु सम्बन्धी ८० अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं। २११. प्रश्न : गजदंत पर्वत कितने और कहाँ पर हैं ? उत्तर : मेरु पर्वत की विदिशाओं में हाथी दाँत के आकार सदृश, अनादिनिधन, तिरछे रूप से. आयत, क्रमशः चांदी, तपनीय स्वर्ण, कनक और वैडूर्यमणि के सदृश वर्ण वाले सौमनस, विद्युत्प्रभ, गन्ध मादन और माल्यवान नाम के महारमणीय चार महापर्वत हैं। चारों पर्वतों के ऊपर प्रथम सिद्धायतन कूट हैं, जहाँ पर अकृत्रिम जिन चैत्यालय हैं। गजदन्त के अभ्यन्तर भाग में सीता नदी के पूर्व (११८)

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