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उत्तर: समवसरण के कोठों के क्षेत्र से यद्यपि जीवों का क्षेत्रफल असंख्यातगुणा है तथापि वे सब जीव जिनेन्द्रदेव के माहात्म्य से एक दूसरे से अस्पृष्ट रहते हैं ।
जिनेन्द्र भगवान के माहात्म्य से बालक - प्रभृति जीव समवसरण में प्रवेश करने अथवा निकलने में अन्तर्मुहूर्त काल के भीतर संख्यात् योजन चले जाते हैं ।
जिन भगवान के माहात्म्य से आतंक, रोग, मरण, उत्पत्ति, वैर, कामबाधा तथा पिपासा और क्षुधा की पीड़ाएँ वहाँ नहीं होती हैं।
२२७. प्रश्न : अभिन्नदशपूर्वी किसे कहते हैं ?
उत्तर : दस पूर्व पढ़ने में रोहिणी आदि महाविद्याओं के पाँच सौ और अंगुष्ठप्रसेनादिक क्षुद्र विद्याओं के सात सौ देवता आकर आज्ञा मांगते हैं। इस समय जो महर्षि जितेन्द्रिय होने के कारण उन विद्याओं की इच्छा नहीं करते हैं वे अभिन्नदशपूर्वी कहलाते हैं।
२२८. प्रश्न : महापुरुष कितने होते हैं ?
उत्तर : तीर्थंकर ( २४ ), उनके गुरुजन ( माता-पिता २४ + २४), चक्रवर्ती (१२), बलदेव (९), नारायण (६), प्रतिनारायण (६), रुद्र
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