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क्षेत्र में जघन्य भोगभूमि है। एक मेरु संबंधी छह भोगभूमि हैं, अत: पाँच मेरु संबंधी ३० भोगभूमि हैं।
५ भरत, ५ ऐरावत और ५ विदेह से संबंधित १५ कर्मभूमि
हैं।
२१४, प्रश्न : विदेहक्षेत्र- स्थित देशों की क्या विशेषता है ? उत्तर : विदेहस्थित देशों में कभी दुर्भिक्ष नहीं पड़ता।
१. अतिवृष्टि, २. अनावृष्टि, ३. मूषक, ४. शलभ (टिड्डी), ५. शुक्र, ६. स्वचक्र और ७. परचक्र है लक्षण जिसका ऐसी सात प्रकार की ईतियों नहीं होती हैं तथा गाय, मनुष्य आदि जिनमें अधिक मरते हैं, ऐसे मारि आदि रोग वहाँ कभी नहीं होते। वे देश कुदेव, कुलिंग अर्थात् जिनलिंग से भिन्न लिंग और कुमत से रहित होते हैं। वे देश केवलज्ञानियों, तीर्थकरादि शलाका पुरुषों और ऋद्धिसम्पन्न साधुओं से निरन्तर समन्वित रहते हैं।
प्रत्येक विदेह देश में यदि पृथक्-पृथक् एक-एक तीर्थंकर, चक्रवर्ती और अर्ध चक्रवती अर्थात् नारायण और प्रतिनारायण हों तो उत्कृष्टतः १६० हो सकते हैं। जघन्यतः २० ही होते हैं। २१५. प्रश्न : जम्बूद्वीप में पर्वत, नदी एवं सरोवर आदि की
कुल संख्या कितनी है ?
(१२०)