Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 123
________________ बिना कल्पवृक्षों के मधुर फलों का भोग करते हैं एवं हदिणादिक दिव्य तृणों का भोजन करते हैं। २०५. प्रश्न : भोगभूमि में कितने गुणस्थान होते हैं ? उत्तर : भोगभूमिज जीवों के अपर्याप्त अवस्था में मिथ्याल्व और सासादन वे दो गुणस्थान होते हैं तथा पर्याप्त अवस्था में १ से ४ गुणस्थान तक होते हैं। २०६. प्रश्न : कुभोगभूमि कहाँ है ? और वहाँ के मनुष्यों का आकार आदि कैसा है ? उत्तर : लवणसमुद्र के भीतर चार दिशाओं में चारद्वीप-चार विदिशाओं में चार द्वीप और आठ अन्तर दिशाओं में आठ द्वीप, हिमवान् कुलाचल, भरत संबंधी विजयार्थ, शिखरी कुलाचल और ऐरावत सम्बन्धी विजया इन चारों पर्वतों के दोनों अन्तिम भागों के निकट एक एक अर्थात् आठ द्वीप हैं। इस प्रकार लवण समुद्र के अभ्यन्तर तट के कुल द्वीपों की संख्या (४+४+८+८) = २४ है। इसके वाह्य तर पर भी २४ द्वीप हैं, अतः लवण समुद्र संबंधी ४८ द्वीप हुए। इसी प्रकार कालोदक समुद्र के दोनों तटों के ४८ द्वीप हैं। इन ६६ द्वीपों में कुभोगभूमि की रचना है। वहाँ के मनुष्यों की आकृतियाँ विभिन्न प्रकार की होती हैं। कोई मनुष्य एक टांग वाले, कोई पूँछ वाले, कोई लम्बे कान वाले, किन्हीं (११४)

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