Book Title: Karananuyoga Part 3
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

Previous | Next

Page 121
________________ भोगभूमि में युगल उत्पत्ति होती है। वहाँ के मनुष्य वज्रवृषभनाराच संहनन वाले, समचतुरस्त्र संस्थान से युक्त; कवलाहार करते हुए भी नीहार से रहित होते हैं। वहाँ रोग, कलह, ईर्ष्या एवं अकालमरण नहीं होता है। वे युगल विक्रिया द्वारा बहुत प्रकार के शरीर बनाकर चक्रवर्ती के भोगों से अनन्तगुणे भोगों को आयु-पर्यन्त भोगते हैं। पुरुष छींक से एवं स्त्री जम्भाई आने से मुत्यु को प्राप्त होते हैं। वहाँ पर विकलत्रय एवं असंज्ञी जीवों का अभाव होता है। २०१. प्रश्न : कर्मभूमि किसे कहते हैं ? उनकी रचना कहाँ पर उत्तर : जहाँ असि, मषि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और विद्या से आजीविका होती है, उसे कर्मभूमि कहते हैं। देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर शेष विदेहक्षेत्र में शाश्वत कर्मभूमि रहती है। भरत और ऐरावत क्षेत्र में कालचक्र के परिवर्तन के अनुसार सुषमा-दुःषमा, दुःषमा, दुःषमा-दुषमा कालों में कर्मभूमि रहती है। विजयार्ध पर्वत एवं म्लेच्छ खण्डों में शाश्वत कर्मभूमि रहती है। २०२. प्रश्न : मोगभूमि में उत्पत्ति के क्या कारण हैं ? उत्तर : जो मिथ्यात्व भाव से युक्त होते हुए भी मन्दकषायी हैं, पंच अणुव्रत के धारी हैं, आठ मूलगुणों को धारण करने वाले हैं, भक्ति से जिनपूजा करते हैं, अत्यन्त निर्मल संयम के धारक और (११२)

Loading...

Page Navigation
1 ... 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147