________________
बाँधते हैं। सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक् तप से युक्त, मार्दवादि गुणों से युक्त, तीन गारव और तीन शल्यों से रहित, ईर्ष्या, मात्सर्यभाव, भय और लोभ से वशीभूत होकर वर्तन नहीं करने वाले, सुख-दुःख और मित्र - शत्रु में समता भाव रखने वाले, शरीर से निरपेक्ष, अत्यन्त वैराग्य भाव से युक्त, रागादि दोषों से रहित, मूल एवं उत्तर गुणों का प्रमाद रहित पालन करने वाले श्रमण महा ऋद्धि धारक देवों की आयु बाँधते हैं।
उत्तम, मध्यम, जघन्य पात्रों को चारों प्रकार का दान देने वाले, लज्जा और मर्यादा रूप मध्यम भावों से युक्त जीव मध्यम ऋद्धि धारक देवों की आयु बाँधते हैं। अनादि से प्रकटित संज्ञा एवं अज्ञान के कारण अपने चारित्र में अत्यन्त क्लिश्यमान भाव - संयुक्त जीव, दूषित चारित्र वाले, क्रूर, उन्मार्ग में स्थित, निदान भाव सहित और मन्द कषायी जीव अल्पर्द्धिक देवों की आयु बाँधते हैं ।
१३७ प्रश्न: कन्दर्प आदि देवों में उत्पत्ति के क्या कारण हैं ? उत्तर : यहाँ मनुष्य पर्याय में जो जीव स्त्रीगमन आदि विटलक्षण को धारण करते हुये कन्दर्प परिणामों से संयुक्त होते हैं, वे अपने योग्य शुभ कर्म के वश से कन्दर्पदेव होकर ईशान कल्प पर्यन्त उत्पन्न होते हैं, इससे ऊपर नहीं । ये देव ईशान कल्प की जघन्य
(e)