________________
उत्तर : भरत क्षेत्र के मध्य में पूर्व-पश्चिम लम्बा विजयार्थ पर्वत है जिससे इस क्षेत्र के दो खण्ड हो जाते हैं तथा पद्म द्रह से निकलने वाली गंगा-सिन्धु नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर आती हैं, इनसे इस भरतक्षेत्र के छह खण्ड हो जाते हैं। दक्षिण दिशा का बीच का आर्य खण्ड हैं और शेष पाँच म्लेच्छ खण्ड हैं। चक्रवर्ती इन छह खण्डों का अधिपति होता है। ऐसे छह खण्डों का विभाजन ऐरावत क्षेत्र एवं प्रत्येक विदेह क्षेत्र में भी होता है ।
१६७. प्रश्न : भरतक्षेत्र में विजयार्थ पर्वत की अवस्थिति कहाँ पर है एवं उसका स्वरूप कैसा है ?
उत्तर : भरतक्षेत्र के बहुमध्य भाग में नाना प्रकार के उत्तम रत्नों से रमणीय, रजतमय विजयार्ध नामक उन्नत पर्वत विद्यमान है । यह पर्वत २५ योजन ऊँचा एवं पूर्व-पश्चिम लम्बा है । १० योजन ऊपर जाकर इस पर्वत के दोनों पार्श्व भागों में विद्याधरों की एक - एक श्रेणी है। दक्षिण श्रेणी में विद्याधरों की ५० और उत्तर श्रेणी में ६० नगरियाँ हैं ।
१६८. प्रश्न : विजयार्थ पर्वत कितने और कहाँ-कहाँ पर हैं ? उत्तर : पाँच मेरु सम्बन्धी ५ भरत, ५ ऐरावत और १६० विदेह क्षेत्रों में से प्रत्येक क्षेत्र में एक-एक विजयार्थ पर्वत है। इस प्रकार विजयार्थ पर्वतों की कुल संख्या १७० है । इन पर्वतों से चक्रवर्ती
(१०८)