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१५४. प्रश
व-आय कबन्
उत्तर : उपयुक्त उत्कृष्ट आयु पर्वापर विदेह क्षेत्रों में उत्पन्न हुए तियंचों के तथा स्वयंप्रभ पर्वत के बाहृय कर्मभूमि-भाग में उत्पन्न हुए तिर्यंचों के ही सर्वकालं पायी जाती है। भरत और ऐरावत क्षेत्र के भीतर चतुर्थकाल के प्रथम भाग में भी किन्हीं निर्यचों के उक्त उत्कृष्ट आयु पायी जाती है इस प्रकार स्वयम्प्रभ पर्वत के बाह्य 'माग की कर्मभूमि में ही उत्कृष्ट अवगाहना वाले त्रस जीव पाये जाते हैं।
के क्या कारण है ? उत्तर : मायाचारी करना, धर्मोपदेश में मिथ्या बातों को मिलाकर उनका प्रचार करना, शीलरहित जीवन बिताना, मरण के समय नील व कापोत लेश्या और आतध्यान का होना आदि तिर्यच आयु के बन्ध के कारण हैं।
पृथ्वी की रेखा के समान रोषादि होना, गूढ़ और जानने में न आवे ऐसे हृदय का परिणाम होना, शल्य युक्त होना, जातिकुल __ में दूषण लगाना, विसंवाद में रुचि होना, सद्गुणलोप और असद्गुण
का ख्यापन करना आदि तिर्यच आयु के आस्रव के कारण हैं। ___ जो पापी जिनलिंग को ग्रहण करके संयम एवं सम्यक्त्व भाव छोड़ देते हैं और पश्चात् मायाचार में प्रवृत्त होकर चारित्र को नष्ट कर देते हैं तथा जो कोई मूर्ख मनुष्य कुलिंगियों को नाना
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